आक्रोश का असर

Last Updated 08 Mar 2022 02:55:40 AM IST

अमृतसर में भारत की पहली रक्षा पंक्ति सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के खासा हेडक्वार्टर में एक जवान के अपने चार साथियों की गोली मारकर हत्या करने और खुद जान देने की घटना वाकई तकलीफ है।


आक्रोश का असर

अर्धसैनिक बल के जवानों में तनाव किस कदर पसरा हुआ है, यह रविवार को ज्ञात हुआ। शुरुआती जानकारी इसी बात की ओर इशारा कर रही है कि कांस्टेबल सत्यप्पा एस के अपनी ज्यादा समय की डय़ूटी से काफी परेशान और तनाव में था। हालांकि सुरक्षा बलों की जांच में वारदात के पीछे की बातों को लेकर फिलहाल कुछ भी ज्ञात नहीं हो सका है। कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी से घटना की वजह का पता चल सकता है। वहीं पुलिस भी इस मामले की जांच में जुटी है।

दरअसल, बीएसएफ, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) में जवानों के काम के घंटे तो निर्धारित हैं, मगर कई बार जवानों से ज्यादा काम लिया जाता है। छुट्टी को लेकर भी जवानों में काफी आक्रोश और तनाव देखा जाता है। ज्यादातर घटनाओं में छुट्टी नहीं मिलने की बात ही सामने आई है। इसको देखते हुए अफसरों ने जवानों की मानसिक और भावनात्मक स्तर का पता लगाने के सुझाव भी दिए थे। स्वाभाविक तौर पर यह निष्कर्ष निकलता है कि बल में बहुत कुछ करने की जरूरत है। जवानों को तनावमुक्त कैसे रखा जाए; सबसे बड़ी चुनौती अधिकारियों के लिए यही है।

आंकड़ों की बात करें तो 2018 के बाद से सीआरपीएफ में जवान द्वारा साथी कर्मिंयों की हत्या की 13 घटनाओं में अब तक 18 लोगों की जान जा चुकी है, जबकि सीआईएसएफ जवानों को मात्र 30 दिन का वार्षिक अवकाश मिलता है। वहीं कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स वेलफेयर एसोसिएशन के मुताबिक केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में पिछले एक दशक के दौरान 81,000 जवानों ने स्वैच्छिक रिटायरमेंट ले ली है। इतना ही नहीं, वर्ष 2011-20 तक 16 हजारों जवानों ने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया।

परिवार दे दूर पोस्टिंग, समय पर अवकाश नहीं मिलना, अधिकारियों का बुरा बर्ताव, प्राकृतिक आपदा में इनकी तैनाती, देश के विभिन्न इलाकों में चुनाव संपन्न कराने की जिम्मेदारी आदि वजहों से जवानों को न तो मानसिक तौर पर सुकून मिलता है और भावनात्मक तौर पर आराम मिलता है और जब तक इन मसलों का समाधान नहीं निकाला जाएगा, ऐसा होने की आशंका बनी रहेगी।



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