आतंकियों को सही सजा
मानवता को दहलाने की मौत से अधिक भी कोई सजा हो सकती है, तो अहमदाबाद सीरियल बम धमाकों के दोषी उसके हकदार थे।
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शुक्रवार को एक विशेष अदालत ने अहमदाबाद में 2008 में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के 38 दोषियों को मौत और ग्यारह अन्य को मौत तक उम्रकैद की सजा सुनाई। धमाकों में 56 बेकसूर लोगों की मौत हो गई थी और 200 से अधिक घायल हुए थे। किसी अदालत के इतनी बड़ी संख्या में दोषियों को एक बार में मौत की सजा सुनानेका यह पहला मामला है। इससे पहले जनवरी, 1998 में तमिलनाडु की एक टाडा अदालत ने 1991 में हुई पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के सभी 26 दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी।
अहमदाबाद धमाकों के करीब चौदह साल बाद मामले में फैसला आया है। 26 जुलाई, 2008 को गुजरात के अहमदाबाद में सत्तर मिनट के भीतर एक के बाद एक इक्कीस धमाकों से पूरा देश हिल गया था। सरकारी सिविल अस्पताल, नगर निगम के एलजी हॉस्पिटल, बसों में, पार्किग में खड़ी मोटरसाइकिलों, कारों तथा अन्य स्थानों पर धमाके हुए थे। इन धमाकों के कुछ ही दिन बाद सूरत में भी 29 बम मिले थे, लेकिन खुशकिस्मती से उनमें से किसी में भी विस्फोट नहीं हुआ।
सजा पाने वाले सभी दोषी प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) और आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन (आईएम)से जुड़े थे। देश की अलग-अलग जेलों में बंद सभी दोषियों ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अपनी किस्मत का फैसला सुना। आईएम ने गुजरात में 2002 में हुए गोधरा दंगों का बदला लेने के लिए आतंक की साजिश रची थी। गोधरा दंगों में एक हजार से अधिक लोग मारे गए थे, जिनमें से ज्यादातर मुस्लिम समुदाय के थे।
एक दोषी ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दिए अपने बयान में यह स्वीकार किया था कि उन्होंने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की हत्या की भी साजिश रची थी। नरेन्द्र मोदी आज देश के प्रधानमंत्री हैं। सजा पाने वालों में से एक आजमगढ़ के संजरपुर का है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आरोप लगाया है कि इस आतंकी के पिता के संबंध सपा से हैं, और वह सपा के लिए चुनाव प्रचार कर रहा है। आरोपों से दूर यह दहशतगर्दी का मामला है, और दहशतगदरे को इसी तरह कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए। धमाकों में मारे गए 56 लोगों के परिजनों को इससे कुछ राहत मिलेगी।
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