भाजपा विरोधी मोर्चा
वैसे तो आम चुनाव होने में अभी दो वर्ष बाकी हैं, मगर भाजपा विरोधी राजनीतिक पार्टियां अभी से 2024 में होने वाले ‘रण’ की तैयारियों में जुट गई हैं।
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इस भाजपा विरोधी मोर्चे की शुरुआत तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव यानी केसीआर ने की है। रविवार को उन्होंने इस कवायद के तहत सबसे पहले शिवसेना के अध्यक्ष और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से उनके सरकारी आवास ‘वर्षा’ में मुलाकात की। उद्धव के साथ उनकी बातचीत दो घंटे चली। बाद में दोनों नेताओं ने संयुक्त प्रेसवार्ता में भाजपा के कामकाज को निशाने पर लिया। स्वाभाविक तौर पर केसीआर और उद्धव का मानना है कि देश में बदलाव की जरूरत है। इन दोनों ने केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग पर भी सवाल उठाए। बाद में केसीआर और ठाकरे नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रमुख शरद पवार से मिलने उनके आवास पहुंचे।
हालांकि तीसरा मोर्चे या एक अलग मंच का गठन अभी शैशव अवस्था में है, किंतु भाजपा की नीतियों और उसके शासन के तौर-तरीकों से जिस भी राजनीतिक पार्टियों का छत्तीस का आंकड़ा है, उन्हें एकजुट होना होगा। अलबत्ता, भाजपा के खिलाफ बनने वाले मोर्चे में एकता की बात उसी तरह है जैसे तराजू पर मेढ़कों को तौलना। यह आसान काम नहीं है। अतीत में भी हमने देखा है कि भाजपा के विरोध में बने मोच्रे का क्या हश्र हुआ? दिसम्बर 2020 में तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी ने भी कुछ इसी तरह महाराष्ट्र की यात्रा कर भाजपा के खिलाफ मोर्चा बनाने की कवायद शुरू की थी। उस दौरान ममता ने शरद पवार और शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे और संजय राऊत से मिली थीं।
उस दौरान ममता की चाहत थी कि भाजपा विरोधी मंच से कांग्रेस को दूर रखा जाए। हालांकि यह कवायद परवान नहीं चढ़ सकी। इस बीच तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन भी भाजपा विरोध की अगुवाई को लेकर सक्रिय हुए हैं। हालांकि ममता के उलट स्टालिन कांग्रेस को अपने मोच्रे में शामिल करने को लेकर नरम रुख अख्तियार किए हैं। देखना है, भाजपा की 2024 में घेराबंदी कितनी मजबूत और मारक होती है। फिलवक्त कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। इसकी एक अहम वजह भाजपा के पास प्रधानमंत्री के चेहरे के तौर पर नरेन्द्र मोदी का होना है। शायद विपक्ष इसी पक्ष पर कमजोर दिखता है।
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