सावधान रहने की सलाह

Last Updated 21 Feb 2022 12:41:49 AM IST

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की शक्ति का इस्तेमाल बहुत समझदारी और सावधानी के साथ किया जाना चाहिए। वह भी दुर्लभ मामलों में।


सावधान रहने की सलाह

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ ने एक संपत्ति विवाद में तीन लोगों के खिलाफ जालसाजी और धोखाधड़ी का मामला रद्द करते हुए ये टिप्पणियां कीं। शीर्ष अदालत ने उन कुछ श्रेणियों को भी स्पष्ट किया जहां कार्यवाही रद्द करने की ऐसी शक्ति का इस्तेमाल किया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसी एक श्रेणी जहां इसका इस्तेमाल किया जा सकता है, वह ऐसी आपराधिक कार्यवाही से है जो आरोपित से प्रतिशोध लेने और निजी द्वेष के मकसद से दुर्भावनापूर्ण रूप से शुरू की गई हो। अदालत ने यह भी कहा कि दंडाधिकारी को आपराधिक दंड संहिता की धारा 156(3) के तहत शीर्ष अदालत द्वारा तय कानून पर तवज्जो बनाए रखना चाहिए।

अदालत ने कहा कि पेश मामले में परेशान करने के मकसद से आरोपित के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है। गौरतलब है कि अभी होता यह है कि किसी को परेशान करने के लिए लोग मजिस्ट्रेट के समक्ष अपराध दंड संहिता की धारा 156(3) के तहत अर्जी देकर आपराधिक रिपोर्ट दर्ज करवा देते हैं। इस प्रवृत्ति पर रोक के लिए शीर्ष अदालत ने सख्त रुख दिखाया है। स्पष्ट कर दिया है कि अब से धारा 156(3) के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष आने वाली अर्जी के साथ शपथ-पत्र लगाना जरूरी होगा। शपथ-पत्र साथ न होने पर मजिस्ट्रेट इस अर्जी का संज्ञान नहीं लेंगे। जाहिर है कि शपथ-पत्र साथ होने की अनिवार्यता से लोगों में भय रहेगा।

शिकायतकर्ता पर यह जिम्मेदारी आन पड़ेगी कि वह किसी को परेशान करने की नीयत से मामला दायर न करे। यदि वह इस व्यवस्था से बेपरवाह होकर झूठे मामले को बढ़ाने पर आमादा हुआ तो उसके खिलाफ अपराध दंड संहिता की धारा 40 के तहत अदालत में झूठ बोलने और झूठा शपथ-पत्र दायर करने का मुकदमा चलाया जा सकता है। इस धारा के तहत दंडित होने वाले को सात साल की सजा का प्रावधान है। अदालत की व्यवस्था से कह सकते हैं कि अदालतों में मामलों के अंबार में बेवजह का इजाफा नहीं हो सकेगा। साथ ही, किसी को भी कानून की आड़ लेकर बेवजह परेशान भी नहीं किया जा सकेगा।



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