भीड़ हिंसा पर सख्ती
झारखंड विधानसभा ने भीड़ द्वारा पीट-पीट कर मार डालने के मामलों से सख्ती से निपटने के लिए मंगलवार को ‘भीड़ हिंसा रोकथाम एवं मॉब लिंचिंग विधेयक-202।’ को ध्वनिमत से पारित कर दिया।
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विधेयक राज्यपाल की स्वीकृति मिलने के बाद कानून बन जाएगा। इसके तहत इस तरह की हिंसा में शामिल पाए जाने या हिंसा की साजिश करने वालों को उम्रकैद की सजा होगी। घायलों को मुफ्त उपचार का भी प्रावधान है। विधानसभा में भाजपा के नेता सीपी सिंह ने इसे हड़बड़ी में लाया गया विधेयक करार दिया। यह भी कहा कि विधेयक अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण के लिए लाया गया है। जुर्माने और संपत्तियों की कुर्की करने के साथ ही तीन साल से आजीवन सजा तक के प्रावधान पहली नजर में देखने पर बेशक, बेहद सख्त हैं। लेकिन ऐसा कानून सिर्फ एक राज्य में ही नहीं, बल्कि समूचे देश के स्तर पर बनाए जाने की दरकार है।
हालांकि पश्चिम बंगाल और राजस्थान जैसे राज्यों में भीड़ हिंसा के खिलाफ कानून बनाए जा चुके हैं। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विधानसभा चुनाव से पहले 2019 भीड़ हिंसा की घटनाओं की निंदा की थी और इसके खिलाफ सत्ता में आने पर कानून बनाने का वादा किया था। अब उन्होंने इसे कानूनी जामा पहनाने की दिशा में कदम बढ़ा कर निश्चित ही नागरीय जागरूकता का परिचय दिया है। हम सभ्य समाज का हिस्सा होने का दम भरते हैं, लेकिन भीड़ हिंसा हमें किसी आदिम समाज के प्राणी के रूप में दिखा देती है।
हाल के समय में भीड़ द्वारा पीट-पीट कर मार डालने के अनेक मामले सामने आए हैं। किसी एक राज्य से नहीं, बल्कि देश के अलग-अलग हिस्सों में ऐसी घटनाएं हमसे सभ्य समाज का हिस्सा कहने तक का हक छीन रही हैं। पहले से ही किसी के प्रति धारणा बनाकर या जजमेंटल होकर उस पर टूट पड़ना किसी भी समाज में स्वीकार्य नहीं हो सकता। हाल के समय में कुछ धार्मिक स्थलों पर भीड़ ने किसी को घेर कर कुछ आरोप लगाकर पीट-पीट कर मार डाला तो कहीं किसी ने किसी समुदाय को लक्षित करके अपने मन की कर ली।
लोकतांत्रिक देश में इस प्रकार का अंट-शंट आचरण अक्षम्य है, दंडनीय होना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि हमारे नियम-कानून पर्याप्त सख्त हों। ऐसा करने वालों को सख्त सजा मिले तो निश्चित ही इस प्रकार की घटनाओं पर रोक लग सकेगी। लोगों में कानून का भय पैदा करने की गरज से सख्त कानून बनाने में कोई ऊहापोह नहीं रहना चाहिए।
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