लोकतंत्र पर संवाद
अंतरराष्ट्रीय राजनीति के जानकारों का विश्वास है कि एक समान शासन प्रणाली वाले देशों के बीच पारस्परिक रिश्ते आमतौर पर सहज और मधुर होते हैं।
लोकतंत्र पर संवाद |
विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र में शामिल अमेरिका इसी सोच के तहत लोकतंत्र पर वैश्विक संवाद आयोजित करने जा रहा है, जिसमें दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत सहित 110 देशों को आमंत्रित किया गया है। विदेश मंत्रालय ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि भारत ने हमेशा लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान किया है और आगे भी करता रहेगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की लोकतंत्र पर वैश्विक संवाद से जहां चीन और रूस के साथ अमेरिका की नाराजगी बढ़ेगी वहीं दूसरी ओर लोकतांत्रिक और सर्वसत्तावादी देशों के बीच ध्रुवीकरण की प्रक्रिया भी तेज हो सकती है। चीन और रूस को इस सम्मेलन में आमंत्रित नहीं किया गया है। ताइवान को अमेरिका ने स्वतंत्र और संप्रभु देश के तौर पर राजनयिक मान्यता भले नहीं दी है मगर इस सम्मेलन में उसे आमंत्रित करके चीन को एक तरह से चिढ़ाने का काम किया है।
अमेरिका द्वारा लोकतंत्र पर वैश्विक संवाद का आयोजन करना एक नई परिघटना है। ऐसा माना जा रहा है कि बाइडेन इस संवाद के जरिये वैश्विक राजनीति में चीन और रूस के प्रभाव को सीमित करना और अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहते हैं। वास्तव में चीन की बढ़ती हुई सैन्य और आर्थिक शक्ति से अमेरिका की बादशाहत को कड़ी चुनौती मिल रही है। बाइडेन लोकतांत्रिक देशों की गोलबंदी करके अमेरिका को अग्रणी महाशक्ति के तौर पर स्थापित करना चाहते हैं।
चीन ने कहा है कि अमेरिका के इस सम्मेलन का वास्तविक उद्देश्य अपने भू-राजनीतिक लक्ष्यों को आगे बढ़ाना, दूसरे देशों का शोषण करना और अपने निजी हितों का संवर्धन करना है। इसी तरह रूस का मानना है कि अमेरिका का कदम विभाजनकारी है। दक्षिण एशियाई देशों की बात की जाए तो पाकिस्तान को सम्मेलन में आमंत्रित किया गया है, लेकिन अफगानिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका को आमंत्रित नहीं किया गया है। लोकतंत्र का अर्थ ही संवाद है। इस सम्मेलन से दुनिया में लोकतंत्र और मानवाधिकार के मूल्य और मजबूत होते हैं तो इसे एक सार्थक प्रयास माना जाएगा, लेकिन वर्तमान वैश्विक राजनीति के नजरिये से देखा जाए तो यह सम्मेलन शीतयुद्ध को बढ़ावा देने वाला साबित हो सकता है।
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