स्थिर होती जनसंख्या

Last Updated 26 Nov 2021 12:46:07 AM IST

इसे निरंतर बढ़ती आबादी वाले हमारे देश के लिए संतोष की बात माना जाना चाहिए कि जनसंख्या अब स्थिर होने की तरफ बढ़ रही है।


स्थिर होती जनसंख्या

देश में प्रजनन दर (टीएफआर) 2.1 से नीचे आ गई है। इसमें लोगों में बढ़ रही जागरूकता और महिलाओं द्वारा जनसंख्या नियंत्रण के साधनों को अपनाए जाने की बड़ी भूमिका है। आसान शब्दों में इस तरह कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय स्तर पर देश की कुल प्रजनन दर प्रति महिला बच्चों की औसत संख्या 2.2 से घटकर 2 हो गई है। देश में प्रजनन दर के 2.1 से नीचे आने से  माना जा रहा है कि जनसंख्या स्थिर होने की दिशा में बढ़ चली है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के बुधवार को जारी आंकड़ों के अनुसार देश में कुल प्रजनन दर घटकर दो रह गई है। 2016 में यह दर 2.2 थी। सव्रेक्षण में देश के 14 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के लिए जनसंख्या, प्रजनन और बाल स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, पोषण और अन्य बिंदुओं पर प्रमुख संकेतकों की फैक्टशीट जारी की गई है।

इससे पता चलता है कि मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड और उत्तर प्रदेश को छोड़कर सभी चरण 2 राज्यों ने प्रजनन क्षमता का प्रतिस्थापन स्तर (2.1) हासिल कर लिया है। सर्वेक्षण में पाया गया है कि समग्र गर्भनिरोधक प्रसार दर राष्ट्रीय स्तर पर और पंजाब को छोड़कर लगभग सभी चरण 2 राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों में 54 प्रतिशत से बढ़कर 67 प्रतिशत हो गई है। लगभग सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में गर्भ निरोधकों के आधुनिक तरीकों का उपयोग भी बढ़ा है।

सर्वेक्षण में देश के 707 जिलों के लगभग 6.1 लाख  परिवारों को शामिल किया गया है। सर्वे में दावा किया गया है कि बच्चों के पोषण में भी सुधार हुआ है। स्टंटिंग 38 प्रतिशत से घटकर 36 प्रतिशत रह गई है और कम वजन 36 प्रतिशत से घटकर 32 प्रतिशत हो गया है। सव्रेक्षण का यह निष्कर्ष चिंताजनक है कि देश में आधे से ज्यादा बच्चों और महिलाओं में खून की कमी पाई गई है। यहां तक कि गर्भवती महिलाओं में भी खून की कमी पाई गई है।

हालांकि देश भर में स्थापित स्वास्थ्य केंद्रों से गर्भवती महिलाओं को 180 दिन से ज्यादा तक आयरन फोलिक एसिड देने के मामले में सुधार आया है। जनसंख्या दर के स्थिर होने की तरफ बढ़ने में गर्भनिरोध के आधुनिक उपायों के सुलभ होने, नसबंदी को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय मदद और छोटा परिवार को लेकर परिवारों में जागरूकता बढ़ने को अहम माना जा सकता है।



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