एक ही दिन में सजा
पुलिस और अभियोजन पक्ष मजबूत इच्छाशक्ति वाले हों और गुनाह करने वालों को सजा दिलाना चाहते हों तो कोई भी दोषी न्याय के फंदे से बच कर नहीं निकल सकता।
एक ही दिन में सजा |
बिहार के अररिया जिले में विशेष पॉक्सो अदालत ने सिर्फ एक दिन की सुनवाई में सभी गवाहों के बयान, बहस और आरोपी का पक्ष सुनने के बाद आरोपी को दोषी पाते हुए उसे उसी दिन शाम को अंतिम सांस तक आजीवन कारावास और सात लाख रुपये जुर्माने की सजा सुना कर प्रशंसनीय काम किया है।
ऐसे वक्त में जब पॉक्सो एक्ट के तहत हाल के कुछ फैसलों ने जनमानस को झकझोर दिया हो, अररिया अदालत का फैसला विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका सबकी आंखें खोल देने वाला है। देश में एक दिन में सजा सुनाने का यह पहला मामला है।
इस मामले में अभियोजन पक्ष और स्थानीय महिला आईओ की भूमिका विशेष सराहनीय रही, जिन्होंने दो माह से कम वक्त में न केवल आरोप पत्र दाखिल किया बल्कि सभी 10 गवाहों को अदालत में पेश भी किया। अदालत ने अगले दो दिन में आरोप पत्र पर संज्ञान लेते हुए आरोप तय किए और अगली तारीख पर फैसला दे दिया। पॉक्सो के तहत सेशन स्तर की अदालत को एक साल में फैसला देना होता है। लेकिन देखा जाए तो ऐसा होता कहां है।
साल दर साल अदालतों में मामले चलते रहते हैं, और पीड़ित मासूम भुगतते रहते हैं। उस पर कुछ अदालतों के फैसले किताबी फैसले भी होते हैं। बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले में त्वचा से त्वचा का स्पर्श न होने का हवाला देते हुए आरोपी को राहत दे दी गई थी।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 10 साल के लड़के के साथ ओरल सेक्स करने के आरोपी पॉक्सो के अपराधी की अपील पर सुनवाई करते हुए कहा था कि लिंग को मुंह में डालना ‘गंभीर यौन हमला’ या ‘यौन हमले’ की श्रेणी में नहीं आता। यह पेनेट्रेटिव यौन हमले की ’श्रेणी में आता है जो पॉक्सो एक्ट की धारा 4 के तहत दंडनीय है।
अदालत ने अपराधी को मिली 10 साल की सजा घटा कर सात साल कर दी थी। अररिया की अदालत का फैसला तेज सुनवाई का पैमाना तय करता है।
जज शशिकांत राय बधाई के पात्र हैं। इससे पहले मप्र के दतिया जिले में अगस्त, 2018 में रेप के मामले में सिर्फ तीन दिन में फैसला सुनाया गया था। ऐसी तेजी पुलिस और अदालतों के लिए अनुकरणीय है।
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