टकराव की राह पर
अभी तक पश्चिम बंगाल में टकराव राजनीतिक दलों के बीच चल रहा था, लेकिन भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर हमले के बाद यह मामला केंद्र और राज्य के बीच टकराव का रूप लेता जा रहा है।
![]() टकराव की राह पर |
पहले तो केंद्र ने पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव और डीजीपी को 14 दिसंबर को तलब किया, लेकिन बीच में प्रदेश की ममता सरकार आ गई और वह इस बात के पक्ष में नहीं है कि प्रदेश के ये दोनों पदाधिकारी केंद्रीय गृह मंत्रालय के सामने पेश हों। प्रदेश सरकार को लगता है कि केंद्र सरकार दबाव बनाने के इरादे से ऐसा कर रही है। अभी यह मामला शांत भी नहीं हुआ था कि केंद्र ने राज्य के तीन वरिष्ठ पुलिस पदाधिकारियों को केंद्र में प्रतिनियुक्ति के लिए समन भेज दिया। ये वही अधिकारी हैं, जिन्हें नड्डा की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। ऐसा समझा जाता है कि सुरक्षा में खामियों की वजह से उन्हें बुलाया गया है।
अगर ये अधिकारी सुरक्षा में खामी के लिए जिम्मेदार हैं, तो इनके खिलाफ राज्य सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए थी। लेकिन अगर केंद्र को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ता है, तो इसके लिए राज्य सरकार की उदासीनता को कारण माना जा सकता है। पर भले ही केंद्र ने अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों पर लागू होने वाली नियमावली के तहत यह फैसला किया है, लेकिन ऐसे अधिकारियों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर बुलाने से पहले सामान्य तौर पर संबंधित राज्य की सहमति ली जाती है। लेकिन मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस मामले में गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार को दरकिनार कर एकतरफा फैसला किया है।
माना जा सकता है कि दोनों पक्षों के पास अपने-अपने तर्क होंगे, लेकिन अच्छा होता कि कानून-व्यवस्था के इस प्रश्न पर केंद्र और राज्य एक ही धरातल पर खड़े होते। अगर कोई मतभेद था तो वह सार्वजनिक न ही होता, तो व्यवस्था के हित में अच्छा होता। केंद्र और राज्य के बीच यह टकराव कहां तक जाएगा, इसकी दिशा क्या होगी, अभी कहना कठिन है। बहरहाल, केंद्र और राज्य के बीच टकराव की यह कोई पहली घटना नहीं है। पहले भी किसी न किसी मुद्दे पर ऐसी नौबत आती रही है। इसके कारण राजनीतिक हों या कुछ और, भारतीय संघात्मक व्यवस्था के हित में ऐसी संस्थागत व्यवस्था की जरूरत काफी समय से महसूस की जाती है, जहां दो सरकारों के विवादों का प्रभावी तरीके से निपटारा हो।
Tweet![]() |