टीके का अर्थशास्त्र
केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन का कहना है कि कोविड-19 वैक्सीन के उपलब्ध होने पर इसे राज्य में मुफ्त उपलब्ध कराया जाएगा।
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उन्होंने कहा कि वैक्सीन के लिए किसी व्यक्ति से शुल्क नहीं लिया जाएगा, यह केरल सरकार का फैसला है। मध्य प्रदेश और तमिलनाडु से भी इस आशय की घोषणाएं सामने आई हैं। केंद्र सरकार के मुताबिक तीन कोविड-19 वैक्सीन- भारत बायोटेक, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और फाइजर के कोरोना टीके भारतीय ड्रग नियामक के सामने हैं।
ऐसी उम्मीद है कि इन वैक्सीन कैंडिडेट को जल्द ही इमरजेंसी में इस्तेमाल की मंजूरी मिल सकती है। टीकों का विज्ञान अपनी जगह है, पर टीकों का अर्थशास्त्र भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। टीके का अर्थशास्त्र इसलिए महत्वपूर्ण है कि भारत जैसे देश में टीके की कीमत की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रहने वाली है। पल्स पोलियो की कामयाबी का एक बड़ा कारण यह है कि इसकी उपलब्धता मुफ्त है। मलेरिया, चेचक के खिलाफ भी सरकारों ने बजट की महत्वपूर्ण राशि खर्च की है। कोरोना को लेकर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों का अर्थशास्त्र क्या रहने वाला है, यह साफ नहीं है।
अगर कोरोना का टीका पांच सौ रु पये से नीचे की कीमत पर उपलब्ध होता है, तो देश के मध्यम वर्ग से लेकर निम्न मध्यम वर्ग को अड़चन नहीं होगी। पर कोरोना का एक टीका अगर दो हजार रु पये का हो, तो फिर पांच लोगों के परिवार को टीके पर दस हजार रु पये खर्च करना पड़ जाएगा, उस सूरत में कुछ अड़चन पेश आ सकती है। ऐसी भी चर्चा है कि कारपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के तहत कंपनियों को जो रकम कानूनन खर्च करनी होती है, उसके दायरे में कोरोना टीके पर खर्च करने वाली रकम भी लाई जाएगी।
इसका मतलब यह हुआ कि कोरोना टीकाकरण अभियान पर अगर कंपनियां खर्च करेंगी, तो उस खर्च को उस कानूनी खर्च का हिस्सा माना जाएगा, जो किसी कंपनी को कंपनी कानून के प्रावधानों के तहत हर हाल में करनी ही होती है। इससे कोरोना के खिलाफ संघर्ष में एक मजबूती हासिल करना संभव होगा। केरल छोटा राज्य है, जहां मुफ्त टीके सबको उपलब्ध कराए जा सकते हैं। पर जो संपन्न हैं, क्या उन्हें भी टीका मुफ्त में मिलना चाहिए, ऐसे प्रश्नों पर विचार का वक्त आ गया है। टीके के विज्ञान की चर्चा तो बहुत हो गई है, अब टीके के अर्थशास्त्र पर विमर्श बनता है।
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