सहयोग का फल
पिछले दस महीनों से कोरोना विषाणु महामारी से जूझ रही दुनिया के लिए अमेरिकी दवा कंपनी फाइजर की ओर से राहत और संतोष भरी खबर आई है।
सहयोग का फल |
ब्रिटेन में इस महामारी पर नियंत्रण पाने के लिए फाइजर कंपनी द्वारा निर्मित कोरोना-रोधी टीके के इस्तेमाल की स्वीकृति मिल गई है। अगले सप्ताह से ब्रिटेन में इस कंपनी का टीका लगेगा। कोरोना विषाणु नामक अदृश्य शत्रु से दुनिया को बचाने के लिए विश्व भर के वैज्ञानिकों ने पिछले दस महीनों से दिन-रात काम किया।
फाइजर कंपनी द्वारा कोरोना-रोधी टीके को विकसित करने में हंगरी के कैटलिन कारिको, तुर्की के उर सहिन और ओजलेम टुरेसी तथा ग्रीस के अल्बर्ट बौरला के महती योगदान को विश्व इतिहास हमेशा याद रखेगा। उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। हालांकि एक ओर इस जानलेवा और खतरनाक महामारी से दुनिया भर में लाखों लोगों की मौत हो गई और अभी भी लोग इस महामारी के कारण अपनी जान गंवा रहे हैं, लेकिन दूसरी ओर इस खतरनाक वायरस ने एक सकारात्मक संदेश भी दिया है कि दुनिया भर के छोटे-बड़े और विकसित-अविकसित देशों में वैचारिक और राजनीतिक विविधताओं के बीच शांति और सहयोग की दिशा तैयार की।
यही वजह है कि मानवता को महामारी से बचाने के लिए दुनिया के देशों ने आपसी मतभेद भुला दिए और सभी देशों के वैज्ञानिक कोरोना-रोधी टीके को विकसित करने के प्रयास में डाटा साझा करते रहे। वास्तविकता यह है कि कोरोना वायरस अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और विदेशी संस्थाओं को भी एक नया रूप और दिशा दे रहा है। पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से जब सवाल पूछा गया था कि यदि सबसे पहले चीन कोरोना-रोधी टीका विकसित कर लेता है तो क्या अमेरिका उससे टीका हासिल करेगा। ट्रंप ने इसका सकारात्मक जवाब दिया था।
कोरोना नामक सूक्ष्म, अदृश्य विषाणु से नये संकट पैदा हो रहे हैं तो आगे बढ़ने के नये द्वार भी खुल रहे हैं। इस महामारी ने यह भी संदेश दिया है कि भीषण आर्थिक प्रतिद्वंद्विता और उग्र राष्ट्रवाद के दौर में दुनिया के तमाम देश एक दूसरे पर निर्भर हुए बिना न स्वयं को बचा सकते हैं, और न ही आगे बढ़ सकते हैं। उम्मीद है कि कोरोना-रोधी टीके के विकास में जुड़ी अन्य कंपनियां भी आपसी विश्वास और सहयोग के साथ आगे भी काम करती रहेंगी।
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