दूरगामी महत्त्व का आदेश
दूरगामी महत्त्व के अपने एक आदेश द्वारा सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस, सीबीआई, एनआईए, ईडी, एनसीबी आदि को सीसीटीवी कैमरे की निगरानी में ला दिया है।
दूरगामी महत्त्व का आदेश |
इसलिए कि हिरासत में यातना को रोका जा सके। कोर्ट ने केंद्र और राज्यों के अलावा सभी संघ शासित प्रदेाशों से भी कहा है कि सभी थानों में सीसीटीवी कैमरे अनिवार्यत: लगाए जाएं। ऐसी व्यवस्था भी होनी चाहिए कि ये कैमरे रात में भी काम कर सकें और रिकार्ड किए हुए डाटा को एक निश्चित समयावधि तक सुरक्षित रखा जा सकें।
खास बात यह कि थानों का कोई हिस्सा कैमरे की नजर से न बच सके, इसके लिए कोर्ट ने विस्तृत निर्देश दिए हैं यानी ये कैमरे थाने में प्रवेश और निकासी के सभी रास्तों, सभी लॉक-अप, सभी गलियारे व बरामदे, इंस्पेक्टर व सब इंस्पेक्टर के कमरे, वाशरूम और टायलेट के बाहर आदि जगहों पर लगाए जाएंगे।
कोर्ट ने राज्यों को इसके लिए पर्याप्त धन की व्यवस्था करने के लिए कहा है। उसने सीबीआई जैसी जांच एजेंसियों के कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरे लगाने के लिए केंद्र से कहा है। मानवाधिकारों के प्रति कोर्ट की यह प्रतिबद्धता आकस्मिक नहीं थी। दरअसल, ढाई साल पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में हर थाने में सीसीटीवी कैमरा लगाने को कहा था, लेकिन सरकारें हाथ पर हाथ धरे बैठी रहीं और कोर्ट के फैसले पर अमल नहीं हुआ। इसीलिए कोर्ट ने केंद्र और राज्यों को फटकार लगाई है।
पूरी दुनिया में मानवाधिकारों पर खतरा मंडरा रहा हो तो न्यायपालिका को सजग रहना ही होगा। भारतीय संविधान के संरक्षक होने के नाते सुप्रीम कोर्ट का दायित्व बन जाता है कि अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों को प्रदत्त जीवन के अधिकार की रक्षा करे। अगर इस बात पर ध्यान दिया जाए कि भारत में 2019-20 में हर रोज करीब पांच व्यक्तियों की हिरासत में मौत हुई, तो कोर्ट की इस पहल की अहमियत अपने आप स्पष्ट हो जाती है।
हिरासत में मौत के पीछे बीमारी, गैंगवार, आत्महत्या जैसे कारण भी हो सकते हैं, लेकिन पुलिस या जेल अधिकारियों द्वारा दी गई यातना को भी खारिज नहीं किया जा सकता। पुलिस प्रशासन को कानून के शासन और मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशील बनाने के समुचित प्रयास जरूर हों, लेकिन हिरासत में मौत की घटनाओं के लिए जिम्मेदार अधिकारियों की पहचान भी सुनिश्चित हो। उम्मीद की जानी चाहिए कि कोर्ट का यह आदेश इस दिशा में सहायक होगा।
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