दुर्भाग्यपूर्ण बयान
हाल के दिनों में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने घरेलू और विदेशी मामलों पर कुछ ऐसे विवादास्पद बयान दिए जिन्हें लेकर उन्हें आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है।
दुर्भाग्यपूर्ण बयान |
देश में जारी किसान आंदोलन पर उनका एक विवादित वीडियो सामने आया है, जिसमें ट्रूडो कहते हुए नजर आ रहे हैं कि ‘कनाडा हमेशा शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वालों के बचाव में खड़ा है’। उन्होंने यह भी कहा कि ‘भारत से किसानों के आंदोलन की खबर आ रही है। स्थिति चिंताजनक है और हम सभी अपने परिवार और दोस्तों को लेकर फिक्रमंद हैं’। हालांकि भारत ने ट्रूडो द्वारा की गई इस टिप्पणी पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इन्हें भ्रामक सूचनाओं पर आधारित और अनुचित बताया। वास्तव में यह भारत का आंतरिक मामला है और अंतरराष्ट्रीय कानून किसी भी संप्रभु और स्वतंत्र देश के मामलों में किसी भी अन्य देश या वहां की संस्थाओं को हस्तक्षेप करने की इजाजत नहीं देता। गौर करने वाली बात है कि कनाडा स्वयं पृथकतावादी आंदोलन का सामना कर रहा है। कनाडा के पूर्व-मध्य में एक प्रांत है क्यूबेक।
यह कनाडा का एकमात्र प्रांत है जहां फ्रेंच भाषी बहुमत में हैं। क्यूबेक प्रांत में पृथकतावादी भावनाएं पिछले कई दशकों से उभार पर रही हैं। ट्रूडो से अपेक्षा थी कि वह राष्ट्रीय एकता और अखंडता को पृथकतावादियों से उत्पन्न खतरे के बारे में अधिक जिम्मेदाराना रवैया अपनाएंगे। उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि किसी न किसी बहाने खालिस्तानी पृथकतावादी शक्तियों को शह देने के प्रयासों से भारत का बाल बांका होने वाला नहीं है, लेकिन कनाडा के नेताओं द्वारा अपरिपक्व रवैया अपनाए जाने से स्वयं उनके देश की समस्या बढ़ सकती है। लगता है कि इतिहास चक्र उल्टा घूम रहा है। बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में कनाडा में प्रवासी भारतीयों ने देश की आजादी का आवाज बुलंद की थी। कामागाटामारू प्रकरण देश की आजादी की लड़ाई का एक प्रमुख अध्याय है। कामागाटामारू पानी का जापानी जहाज था जिसमें 367 यात्री थे। इनमें ज्यादातर पंजाबी सिख थे। वे रोजगार के लिए कनाडा जा रह थे। लेकिन इनको कलकत्ता वापस भेज दिया गया। अंग्रेज इनको गिरफ्तार करके पंजाब भेजना चाहते थे लेकिन यात्रियों और पुलिस के बीच हुई मुठभेड़ में 22 लोग मारे गए। दुर्भाग्यपूर्ण है कि कनाडा की इसी सरजमीं से कुछ सिरफिरे लोग खालिस्तान की मांग उठा रहे हैं।
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