डूबते बैंक

Last Updated 02 Dec 2020 12:46:53 AM IST

अतरराष्ट्रीय वित्तीय रेटिंग एजेंसी मूडीज ने हाल में उभरते बाजारों के वित्तीय संस्थानों की स्थिति पर एक आकलन प्रस्तुत किया है।


डूबते बैंक

इस आकलन से जुड़े कई तथ्य भारतीय वित्तीय और बैंकिंग व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं। इस आकलन में मूडीज ने कहा है कि आगामी दो वर्षो में भारत और श्रीलंका में बैंकों की पूंजी के स्तर में गिरावट देखने को मिलेगी। एशिया में डूबत कजरे की तादाद बढ़ेगी। बैंकों को नया निवेश नहीं मिला, तो पूंजी में गिरावट होने के कारण बैंकों के पास कर्ज देने के लिए संसाधन कम रहेंगे। जब बैंक कर्ज ही ना दे पाएंगे, तो बैंक दुष्चक्र में फंसेंगे। भारत के कई सरकारी बैंक इस दुष्चक्र में पहले ही फंस चुके हैं।

कोरोना जनित कारोबारी मंदी के चलते इस दुष्चक्र के और गहरे होने की आशंका है। सरकार के सामने भी चुनौती गहरी है। डूबते बैंकों में और ज्यादा पूंजी को डालकर पूंजी को डुबोने की ओर धकेलने की आशंका भी खड़ी हो जाती है। ऐसा लगातार देखने में आया है कि पूंजी डालने के बावजूद सरकार तमाम बैंकों की स्थिति को सुधार नहीं पाई है। खासकर छोटे सरकारी बैंकों की स्थिति विचारणीय है।

छोटे सरकारी बैंकों में से कई के एटीएम काम नहीं करते, कई की बहुत सेवाएं उपयुक्त नहीं हैं। नए बैंकों ने, खासकर नए निजी बैंकों ने उपभोक्ताओं को तरह-तरह के पल्रोभन और बेहतरीन सेवाएं देकर अपनी ओर खींचा है। ऐसी सूरत में नए माहौल में 19वीं सदी के ढांचे के साथ कई छोटे सरकारी बैंक अपने अस्तित्व के लिए जूझते दिखाई पड़ सकते हैं। रिजर्व बैंक और सरकार के लिए यह तो बहुत आसान होता है कि किसी निजी क्षेत्र के समस्याग्रस्त बैंक का विलय निजी क्षेत्र के दूसरे बैंक के साथ कर दिया जाए। पर किसी सरकारी बैंक को किसी और दूसरे निजी बैंक में मिलाना बहुत चुनौतीपूर्ण है। ट्रेड यूनियन, राजनीतिक दलों का विरोध सामने आता है।

किसी कमजोर सरकारी बैंक का दूसरे मजबूत सरकारी बैंक में मिलाने के अपने खतरे हैं। मजबूत सरकारी बैंक भी कमजोरी की राह पकड़ लेता है, ऐसी सूरत में ऐसे उदाहरण भी देखने को मिले हैं। कुल मिलाकर कोरोना ने तमाम चुनौतियां पेश की हैं और बैंकिंग जगत की चुनौती उनमें से एक है। संसाधन सीमित हैं, उन्हें डूबते बैंकों में झोंका जाए और उनकी बिक्री करके संसाधन हासिल किए जाएं, सरकार को इस मुद्दे पर गहन चिंतन करना होगा।



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