उम्मीद दर उम्मीद

Last Updated 01 Dec 2020 12:04:00 AM IST

देश के महत्वपूर्ण सरकारी बैंक स्टेट बैंक आफ इंडिया के एक प्रकाशन -इकोरेप ने कुछ ऐसे बिंदुओं को रेखांकित किया है, जो अर्थव्यवस्था के लिहाज से खासे महत्वपूर्ण हैं, उन पर चिंतन-चर्चा होनी चाहिए।


उम्मीद दर उम्मीद

20 नवंबर, 2020 के इकोरेप के अंक में जो दर्ज है, उसका आशय यह है कि मोटे तौर पर अर्थव्यवस्था को उतना बड़ा झटका कोरोना से नहीं लगा है, जितने बड़े झटके की आशंका पहले की जा रही थी। लघु उद्यमों और कारपोरेट सेक्टर की स्थिति पहले के मुकाबले बेहतर प्रतीत होती है। अर्थव्यवस्था के आधिकारिक आंकड़े आ गए हैं, बावजूद नकारात्मक आंकड़ों के कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था को लेकर एक सकारात्मक भाव है। इसकी वजह यह है कि अर्थव्यवस्था में गिरावट, सिकुड़ाव की रफ्तार कम हो गई है। मंदी की रफ्तार कम हो गई है। भारत की जीडीपी में दूसरी तिमाही यानी जुलाई-सितंबर 2020 की अवधि में 7.5 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।

चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही यानी अप्रैल-जून 2020 की अवधि में जीडीपी में 23.9 प्रतिशत की ऐतिहासिक गिरावट दर्ज हुई थी। यानी मोटे तौर पर यह माना जा सकता है कि अर्थव्यवस्था जिस गति से गड्ढे में जा रही थी, वह गति फिलहाल धीमी हुई है। यानी कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था के गिरने की रफ्तार कम हुई है, फिर धीमे-धीमे यह विकास के रास्ते पर आएगी। तमाम संस्थानों ने अर्थव्यवस्था को लेकर किए गए अपने आकलन में नकारात्मकता को कम किया है।

नोमुरा नामक संस्थान का पहले आकलन था कि 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था में 10.8 प्रतिशत सिकुड़ाव होगा, अब इसका आकलन है यह सिकुड़ाव 8.2 प्रतिशत रह सकता है। ब्रिकविक रेटिंग्स का आकलन था कि पहले 1920-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था 9.5 प्रतिशत सिकुड़ेगी, अब इसका आकलन है कि यह सिकुड़ाव 7 प्रतिशत का रहेगा। एचडीएफसी का आकलन था कि 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था में 9.5 प्रतिशत का सिकुड़ाव रहेगा, अब इसका आकलन है कि सिकुड़ाव 7.5 प्रतिशत रहेगा। कुल मिलाकर भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर अब आशंकाएं कम हैं। पर इसका मतलब यह नहीं है कि हालात बिल्कुल सामान्य हो गए हैं। सिकुड़ाव की आशंकाएं कमजोर हुई हैं, पर अभी तक ऐसी बलवती संभावनाएं नहीं हैं कि 2020-21 में अर्थव्यवस्था सकारात्मक विकास दर दर्ज करेगी।



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