अब और शाहीन बाग नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सार्वजनिक सड़क पर आवागमन अवरुद्ध करके बेमियादी धरना नहीं दिया जा सकता।
![]() अब और शाहीन बाग नहीं |
संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ दक्षिण दिल्ली के शाहीन बाग में चले चर्चित धरने पर दिए अपने निर्णय में शीर्ष अदालत ने कब्जा जमा कर धरना देने की प्रवृत्ति पर सख्त ऐतराज जताते हुए कहा कि ऐसा किया जाना अस्वीकार्य है। अदालत का कहना है कि इस धरने को प्रशासन को हटा देना चाहिए था। अतिक्रमण और अवरोधक हटाने की कार्रवाई करनी चाहिए थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विरोध प्रदर्शन के बीज हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बोए गए थे। आंदोलन से ही हमारे लोकतंत्र का जन्म हुआ लेकिन वे विरोध प्रदर्शन विदेशी हुकूमत के खिलाफ थे। आज हम लोकतांत्रिक देश हैं। अब किए जाने वाले धरना प्रदर्शनों का उद्देश्य मात्र विरोध ही नहीं है, बल्कि इसके साथ हमारे कर्त्तव्य भी जुड़े हैं।
सरकार के कामकाज या किसी फैसले से जरूरी नहीं कि हर कोई सहमत हो। असहमति या विरोध की अनुमति हमारा संविधान देता है, लेकिन साथ ही इस बाबत भी सचेत करता है कि विरोध करते में कहीं हमारे कर्त्तव्य तिरोहित न हो जाएं। संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, लेकिन ध्यान रहे कि हमारा यह अधिकार किसी अन्य नागरिक की स्वतंत्रता को कतई प्रभावित नहीं करे। शाहीन बाग में दिए गए धरने में एक किस्म की हठधर्मिता थी, जिसके चलते आम दिनों में अति व्यस्त रहने वाली यह सड़क काफी दिनों तक बंद रही।
इस सड़क पर अनेक कारोबारी प्रतिष्ठान और बड़े शोरूम भी हैं, जिनमें उन दिनों कारोबार ठप रहा। यह सड़क दिल्ली से नोएडा को जोड़ती है, जहां से हजारों लोगों की आवाजाही चौबीसों घंटे जारी रहती है। लेकिन सीएए के विरोध में बैठे लोगों ने इस सड़क पर आवागमन और कारोबारी गतिविधियों को लंबे समय तक बंधक जैसा बना रख छोड़ा था। आंदोलन करने वालों ने इस कदर जिद पकड़ रखी थी कि अदालत ने एक याचिका मिलने पर जब दो वकीलों को उनसे वार्ता करने को भेजा गया तो उनकी एक न सुनी गई। बाद में दैवीय आपदा से यह धरना अपने आप खत्म हो गया। लेकिन प्रशासन की लाचारी दिख चुकी थी। अब शीर्ष अदालत के निर्णय से सरकार को ध्यान रहना चाहिए कि जरूरी लगे तो सख्ती बरतने से उसे पीछे नहीं हटना है।
Tweet![]() |