सांसें बचाने का वक्त
प्रदूषण का मसला दिल्ली-एनसीआर में लगातार गंभीर होता जा रहा है।
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लॉकडाउन के दौरान हालांकि न केवल वायु प्रदूषण में भारी कमी देखी गई, वरन नदियां भी शुद्ध हो गई। लेकिन पिछले कुछ दिनों से प्रदूषण फिर तेजी से बढ़ा है। प्रदूषण बढ़ने के मामले पराली जलाने से तो कुछ फीसद निर्माण कायर्ोे में बढ़ोतरी के कारण दर्ज किए गए हैं। नतीजतन, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को आगे आना पड़ा है। बोर्ड ने राजधानी दिल्ली में निर्माण एवं निर्माण को गिराने संबंधी गतिविधियां और खुले में कूड़ा डाले जाने को वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत होने का उल्लेख करते हुए इन पर रोक लगाने के लिए दिल्ली सरकार को पत्र लिखा है। स्वाभाविक है कि सर्दियों में वायु प्रदूषण भयावह स्थिति में पहुंच जाता है। यही वजह है कि सीपीसीबी ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पूरे किए जाने वाले श्रृंखलाबद्ध कार्य सूचीबद्ध किए।
सीपीसीबी का यह मानना है कि अगर सख्त नियम नहीं बनाए गए और उनका कायदे से पालन नहीं कराया गया तो हालात संभाले नहीं संभलेंगे। वैसे दिल्ली में वायु प्रदूषण पर अंकुश के लिए कुछ कार्य पूरे हो गए हैं, लेकिन अभी और किए जाने की जरूरत है। इसके साथ ही सीपीसीबी ने दिल्ली सरकार को तीन डंपिंग स्थलों भलस्वा, गाजीपुर और ओखला में मिश्रित ठोस अपशिष्ट डाले जाने पर जल्द कदम उठाने को कहा है। आने वाले दिनों में खतरा ज्यादा इसलिए है कि दीपावली में आतिशबाजी होगी। गौरतलब है कि एक छोटा पटाखा 10 लीटर और बड़ा पटाखा 100 लीटर तक ऑक्सीजन खत्म कर देता है। जरूरी है कि जनता खुद से पटाखों पर रोक लगाए। ऐसे कदम उठाकर ही गंभीर बीमारियों को हराया जा सकता है।
आने वाले महीनों में निश्चित तौर पर ज्यादा सजग और जागरूक रहने की जरूरत है। सरकार के साथ ही जनता की भी उतनी ही जिम्मेदारी है। सिर्फ सरकार के भरोसे रहकर यह लड़ाई नहीं जीती जा सकती। एक महत्त्वपूर्ण बात यह भी कि अब सिर्फ महानगरों की स्थिति पर ही ध्यान देने की जरूरत नहीं है। छोटे शहरों मसलन राज्यों की राजधानी और टू टीयर के शहर भी प्रदूषण की गंभीर चुनौतियों से जूझ रहे हैं। बेशक, सीपीसीबी ज्यादा सक्रिय है लेकिन बाकी संस्थाओं को भी आगे आकर इस लड़ाई को फतह करने का बीड़ा उठाना होगा। यह जंग हमें हर हाल में जीतनी होगी क्योंकि यह सांसें बचाने का वक्त है।
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