हिमालयी क्षेत्र : उड़ानों को नियंत्रित करना होगा

Last Updated 07 Jul 2025 02:58:33 PM IST

मनुष्य अपनी यात्रा को आरामदायक और जल्दी पूरा करने के लिए हेली सेवाओं का इस्तेमाल बड़ी तेजी से कर रहा है। आजकल मध्य हिमालय की देवभूमि उत्तराखंड स्थित चारधाम के दर्शन करने पहुंच रहे यात्री भी हेली सेवाओं के उपयोग करने में पीछे नहीं हैं।


हिमालयी क्षेत्र : उड़ानों को नियंत्रित करना होगा

अनेक कंपनियों के हेलीकॉप्टर यहां बड़ी संख्या में उड़ान भर रहे हैं, जिनके लिए गाइडलाइंस बनाई गई हैं। बावजूद इसके यात्रा शुरू होने के पिछले 40 दिनों में पांच हेलीकॉप्टर क्रैश हो गए हैं, अनेक तीर्थ यात्रियों की जान गई है।

इस उच्च हिमालयी क्षेत्र की संकरी घाटियों और ऊंचे-ऊंजे पर्वतों के बीच से गुजर रहे हेलीकॉप्टर्स पहले भी दुर्घटनाग्रस्त हुए हैं। अंधाधुंध उड़ानें और उनकी तेज आवाज हिमालय की पारिस्थितिकी पर विपरीत प्रभाव डाल रही हैं।  हेलीकॉप्टरों की उड़ान के लिए मंदाकिनी नदी के तट से 600 मीटर की ऊंचाई तक का मानक है। यात्रियों की सुरक्षा के विषय पर भी विशेष सावधानी बरतने के लिए दिशा-निर्देश दिए गए हैं, लेकिन हेलीकॉप्टरों की गड़गड़ाहट से उच्च हिमालयी क्षेत्रों की जैव-विविधता को भारी नुकसान पहुंच रहा है।

भारतीय वन्य जीव संस्थान द्वारा भी इस हिमालय क्षेत्र में उड़ानों के संबंध में सुझाव दिए गए हैं, जिन्हें केदारनाथ की हेली सेवाओं की गाइडलाइंस में शामिल किया गया है। यहां एक बार में दो हेलीकॉप्टर ही आना-जाना कर सकते हैं। सायं के समय की उड़ान पर प्रतिबंध लगाया गया है। इसके बावजूद यहां पर स्थित दुर्लभ वन्य जीव हिम तेंदुए, कस्तूरी मृग, भरड़, भालू, मोनाल समेत अनेक वन्य जीवों व पक्षियों के झुंड के बीच नीची उड़ान के कारण भगदड़ मच जाती है, जिस कारण असुरक्षित दिशा में भागने से इन बेजुबान जानवरों की चट्टानों से गिर कर मौत हो जाती है। वन विभाग भी इस बाबत चेतावनी देता रहता है, लेकिन जीव-जंतुओं का जान गंवाना जारी है। 

चिंताजनक है कि हजारों हैक्टेयर में फैले केदारनाथ अभयारण्य, गंगोत्री वन्य जीव पार्क के जीव-जंतु सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि हेलीकॉप्टरों की नीची उड़ान के कारण वन्यजीवों के सहवास पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। इस कारण उनकी संख्या भी घट सकती है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि नीची उड़ान के कारण ग्लेशियरों के पिघलने की दर भी बढ़ सकती है जबकि पर्यटकों और सैलानियों के सैर-सपाटे लिए ओम पर्वत जैसे ग्लेशियरों के ऊपर भी उड़ानें भरी जा रही हैं। अनियंत्रित पर्यटकों की आवाजाही इसका सबसे बड़ा कारण है क्योंकि बहुत समय से अनुभव किया जा रहा है कि चारधाम के यात्रियों को नियंत्रित करने के लिए जब-जब राज्य सरकार और पर्यावरणविद् पहल करते हैं, तो स्थानीय स्तर पर पर्यटन से आय प्राप्त करने वाले संस्थान विरोध पर उतारू हो जाते हैं।

मध्य हिमालय में पहुंच रहे पर्यटक कम पैसे, कम समय में आरामदायक दर्शन करने के लिए हेली सेवाओं का इस्तेमाल करते हैं, ऐसे में में सावधानी के लिए बनाई गई गाइडलाइंस का इस्तेमाल नहीं होता है तो उत्तराखंड में हेलीकॉप्टर की क्रैश होने की घटनाओं को रोका नहीं जा सकेगा। लापरवाही और मानकों की अनदेखी से दुर्घटनाएं हो रही हैं। अंधाधुंध हेली सेवाओं के ऊपर विशेष जांच और मॉनिटरिंग की आवश्यकता है जिसमें तकनीक आदि को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। मौसम विभाग की अधिकतर सूचनाएं सही साबित हो रही हैं। इसको भी ध्यान में रख कर उड़ानों पर नियंत्रण हो।

चारधाम में मई और जून के महीने में हेलीकॉप्टर दुर्घटनाओं ने बहुत चिंताजनक स्थिति खड़ी की है जिसमें सबसे पहले 8 मई को उत्तरकाशी के गंगनानी में हेलीकॉप्टर क्रैश में 6 लोग मारे गए थे जिसके चार दिन बाद बद्रीनाथ से लौट रहा एक अन्य हेलीकॉप्टर क्रैश हो गया। 17 मई को एम्स की हेली एंबुलेंस किसी यात्री को लिफ्ट करने केदारनाथ जा रही थी, लेकिन क्रैश हो गई। 8 जून को केदारनाथ जाने वाला एक और हेलीकॉप्टर क्रैश हो गया। 15 जून को केदारनाथ से गुप्तकाशी जा रहा है एक हेलीकॉप्टर गौरीकुंड के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया था जिसमें सात लोगों की जान चली गई।

दूसरी ओर देखा जाए तो केंद्र  सरकार ने चारधाम के लिए चौड़ी सड़कों का निर्माण लगभग पूरा कर दिया है, और इसमें दो बड़ी गाड़ियों के लिए आने- जाने की सुविधा है। जितने अधिक से अधिक लोग बस, टैक्सी और जमीन पर चलने वाले वाहनों से यात्रा करेंगे उससे स्थानीय होटल और ढाबों को भी रोजगार मिलेगा। पर्यटकों, यात्रियों, सैलानियों को भी यहां की प्रकृति का नजारा देखने को मिलेगा। बाहर से आने वाले लोगों की मुलाकात स्थानीय लोगों से होगी, वे यहां की संस्कृति और प्रकृति के साथ अनुकूल व्यवहार भी करेंगे। उत्तराखंड हिमालय की संवेदनशील स्थिति और यहां के पर्यावरण से प्लास्टिक उन्मूलन को ध्यान में रखते हुए बाहर से आने वाले लोगों की जिंदगी को बचाने के साथ ही हिमालय के इकोसिस्टम को भी बचा कर रखना होगा। 

सुरेश भाई


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