जल्द मिले इंसाफ
हाथरस की उन्नीस साल की दलित लड़की की गैंगरेप के बाद इलाज के दौरान हुई मौत को सुप्रीम कोर्ट ने भयावह करार दिया है।
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मंगलवार को इस मामले की शीर्ष अदालत में भी सुनवाई हुई। अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार से पीड़ित परिवार को सुरक्षा प्रदान करने तथा इलाहाबाद हाई कोर्ट की तरफ से उठाए गए सवालों के बारे में आठ अक्टूबर तक हलफनामा देने को कहा। वहीं, उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने अदालत में हलफनामा पेश करते हुए उन हालात का जिक्र किया गया जिनके चलते रात्रि में ही मृतका का अंतिम संस्कार करना पड़ा। बताया कि अंतिम संस्कार पीड़ित परिजनों की मौजूदगी में किया गया। उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि सुबह तक रुका जाता तो दिन निकलते ही हिंसा हो सकती थी। गौरतलब है कि पिछले दिनों धरे गए एक संदिग्ध संगठन के चार लोगों से पूछताछ में पता चला कि घटना को लेकर जातीय हिंसा भड़काने का कुत्सित मंसूबा था।
इस संगठन की संबद्धता के सूत्र शाहीन बाग में धरने के दौरान पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों से जुड़े हैं। कुछ अरसा पहले बेंगलुरू में हिंसा से भी यही संगठन जुड़ा बताया गया। दरअसल, उत्तर प्रदेश सरकार को कुछ खुफिया सूचनाएं मिली थीं, जिनमें अंदेशा जताया गया था कि गैंगरेप और हत्या की घटना के विरोध की आड़ में बड़े पैमाने पर जातीय हिंसा भड़काई जा सकती है। सरकार को लगा कि हिंसा को सांप्रदायिक रंग भी दिया जा सकता था क्योंकि विरोधी दलों ने सरकार को बदनाम करने के लिए साजिश रची थी।
मीडिया ने आक्रामकता के साथ इस घटना की जिस तरह रिपोर्टिग की और कांग्रेस समेत अन्य पार्टियों के नेता और कार्यकर्ताओं ने सड़क पर उतरकर हाथरस स्थित पीड़िता के गांव जाने की जिद में हाइवे पर पुलिस बंदोबस्त को छिन्न-भिन्न करने की कोशिशें कीं उससे जातीय हिंसा भड़काने की मंशा रखने वालों को माकूल मौका दिखाई दिया। उन्होंने ऐसी जानकारियां ऑनलाइन डाल दीं जिनमें बताया गया था कि मास्क लगाकर पुलिस को कैसे छकाया जा सकता है। पुलिस की सख्ती से कैसे बचा जाए? पथराव आदि कैसे किया जाए? दर्दनाक घटना पर तरह-तरह की कहानियां गढ़ी गई। इसे सनसनीखेज बनाने की कोशिश की गई। बेशक, सरकार की तत्परता से ऐसी कोशिशें नाकाम हो गई लेकिन जरूरी है कि निष्पक्ष जांच कराकर पीड़ित पक्ष को जल्द से जल्द इंसाफ दिलाया जाए।
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