शिखर के बाद
वित्त मंत्रालय की हाल की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि कोरोना का शिखर सितम्बर में आकर जा चुका है यानी अब हालात बदतर ना होकर बेहतर ही होंगे।
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गौरतलब है कि इस आशय की रिपोर्ट स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से ना आकर वित्त मंत्रालय की तरफ से आई है यानी वित्त मंत्रालय को कोरोना की ज्यादा चिंता है क्योंकि कोरोना अब आर्थिक महामारी का रूप ले रहा है। यह अलग बात है कि हाल की रिपोटरे के मुताबिक कारों और दुपहिया वाहनों की बिक्री में बढ़ोतरी हुई है। पर इसका मतलब यह कदापि नहीं है कि अर्थव्यवस्था अपने पुराने हाल में चली गई है या अब कोरोना से बेफिक्र हो जाना चाहिए।
पीक यानी शिखर कोरोना का जा चुका है, इसका मोटा आशय है कि अब लाखों की तादाद में रोज कोरोना संक्रमित व्यक्तियों के बारे में पढ़ने को या सुनने को नहीं मिलेगा। पर हजारों या कुछ सैकड़ों लोगों को कोरोना ग्रसित करता रहेगा, यह बात मान ली जानी चाहिए। सिनेमा हॉलों को खोलने की जल्दी में यह भी नहीं भुलाया जाना चाहिए कि संक्रमण से भिड़ने के कई इंतजाम अब भी नाकाफी हैं और जीवन रक्षक ऑक्सीजन के सिलेंडरों की कालाबाजारी भी हो रही है तो कुल मिलाकर सतर्क रवैया अपनाए जाने की जरूरत है यानी तूफान आया था, तूफान की रफ्तार कम हो गई है।
पर तूफान के असर बाकी हैं और अभी भी तूफान गया नहीं है। यह कोई नहीं जानता कि शिखर के बाद तलहटी की ओर कोरोना कब तक आएगा। यह दोबारा संक्रमित नहीं करेगा, यह भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता। इसकी वैक्सीन कब आएगी, इसे लेकर सिर्फ कयास हैं। कोई भी पक्के तौर पर नहीं बता पा रहा है कि इसकी वैक्सीन पक्के तौर पर कितनी असरदार साबित होगी।
कुल मिलाकर कोरोना को लेकर भय का माहौल भले ही कम हो गया हो, इसकी घातकता भले ही कम हो गई है पर यह कहना जल्दीबाजी है कि देश या दुनिया कोरोना से मुक्त हो गई है। इसलिए आशा का अतिवाद नहीं, बल्कि सतर्कता की समझदारी की जरूरत है। और इस संबंध में आम आदमी को समझदारी दिखाने की जरूरत है। सरकारों का न्यस्त स्वार्थ हालात को एकदम फिट दिखाने में है ताकि वे क्रेडिट ले सकें पर आम आदमी को हर समस्या से खुद ही जूझना होता है। दिल्ली में भी कोरोनाग्रस्त मरीजों के लिए चिकित्सा सुविधाएं जुटा पाना बहुत चुनौतीपूर्ण रहा है। इसलिए कोरोना का शिखर भले ही पार हो गया है, पर कोरोना को लेकर आम आदमी की जिंदगी की चुनौतियां अभी बनी हुई हैं।
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