बिहार में सियासी उठापटक

Last Updated 18 Aug 2020 01:10:30 AM IST

बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले नेताओं का पाला बदल का खेल जोरों पर है।


बिहार में सियासी उठापटक

चुनावी मौसम में जाति, धर्म और क्षेत्रीय गणित के आधार पर नेताओं का एक दल से दूसरे दल में जाने का क्रम अब तेज हो चला है। ताजा सियासी उठापटक के तहत एक दिन पहले ही नीतीश सरकार से बर्खास्त किए गए बिहार के उद्योग मंत्री श्याम रजक सोमवार को लालू यादव की पार्टी आरजेडी में शामिल हो गए।

वहीं राजद ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए अपने तीन विधायकों प्रेम चौधरी, महेश्वर यादव और फराज फातमी को पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित कर दिया। देर-सबेर उनके भी दूसरे दल में जाने से इनकार नहीं किया जा सकता है। बिहार में चुनाव को बमुश्किल तीन-चार महीने ही बचे हैं और नेताओं का पाला बदल का मसला चरम पर है। वैसे तो चुनाव के वक्त नेता अपनी सुविधानुसार दूसरी पार्टियों में जाते हैं, मगर बिहार में यह खेल कुछ महीने पहले से ही शुरू हो चुका है। इसी साल जनवरी में राजद के आठ में से पांच विधान परिषद सदस्यों ने खुद को पार्टी से किनारे कर लिया था।

पांचों ने जदयू का दामन थामा था। दल छोड़ने वालों में संजय प्रसाद, राधाचरण साह, दिलीप राय, मो कमर आलम और रणविजय कुमार सिंह शामिल थे। पिछले साल ही रालोसपा से नाता तोड़कर दो विधायक ललन पासवान और सुधांशु शेखर के अलावा एक विधान पाषर्द संजीव श्याम सिंह ने जद (यू) का दामन थाम लिया था।

दरअसल, बदले हुए राजनीतिक समीकरण को इस पाला बदल का प्रमुख कारण माना जा रहा है। मसलन; निकाले गए विधायकों ने उस वक्त चुनाव में जीत दर्ज की थी जब वर्ष 2015 में जद (यू) और राजद ने मिलकर चुनाव लड़ा लड़ा था। तब जिस तरह के जातीय और अन्य समीकरण नेताओं के लिए माकूल थे, उसमें अब 360 डिग्री का अंतर आ चुका है।

चूंकि अब जद (यू) की सहयोगी पार्टी भाजपा के साथ है तो जातीय गोलबंदी व अन्य फामरूला भी इन पार्टियों की नीतियों के हिसाब से ही तय होगा। वैसे नेताओं का ऐन चुनाव के पहले पार्टी छोड़कर दूसरे दलों में जाने का पुराना इतिहास रहा है। 2015 में बड़े पैमाने पर राजद से टूट कर कई नेता भाजपा में शामिल हो गए थे। बिहार में इन पांच सालों के दरमियान राजनीतिक तौर पर कई तब्दीली आई है। सो बदलते राजनीतिक समीकरणों और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के कारण 2015 की तुलना में बिहार में ज्यादा दल-बदल के मामले देखने को मिलेंगे। यानी नेताओं के टूटने की खबरे अब रोज का हिस्सा होंगी।



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