सोने की चाल
कोरोना की महामारी के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था बुरी तरह से पस्त है।
सोने की चाल |
आर्थिक विकास की रफ्तार थमने से निवेश के कई प्रमुख विकल्प नकारात्मक रिटर्न दिखा रहे हैं। केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीति में नरमी से बैंक एफडी जैसी लोकप्रिय योजनाओं की ब्याज दरें घटकर छह फीसद से नीचे आ गई हैं।
इस संकटकाल में सोना एक ऐसी धातु है जिसकी कीमतें तेजी के नित नये रिकार्ड बना रही हैं। घरेलू बाजार में इसका भाव 56,000 रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर पर पहुंच गया है। बाजार के बारे में पुरानी धारणा है कि जिस वस्तु के भाव ज्यादा बढ़ जाते हैं, उसकी पूछताछ घट जाती है लेकिन सोने के प्रति लोगों का मोह कतई कम नहीं हुआ है।
यही वजह है कि निवेश के लिए इस धातु का आकषर्ण लगातार बढ़ रहा है। इस साल महज सात महीने में ही सोने की कीमतें 40 फीसद बढ़ चुकी हैं। जिन लोगों ने सोने में पिछले एक-दो साल में निवेश किया है वे खूब चांदी काट रहे हैं। ऐसे में आम लोगों के मन में सवाल उठ सकता है कि आखिर, सोने में तेजी की प्रमुख वजह क्या है? कोरोना के संकटकाल में जब तमाम महंगी वस्तुओं की मांग घट रही है तो आखिर, सोने में रिकार्ड तेजी क्यों आ रही है? दरअसल, संकटकाल में निवेश के लिए सोना सबसे सुरक्षित विकल्प साबित होता है।
अमेरिका और चीन के बीच लंबे अरसे से चल रहा है व्यापार युद्ध, भारत-चीन सीमा पर तनाव और अमेरिका में चुनाव को लेकर अनिश्चितता के कारण वैश्विक बाजार में अस्थिरता का माहौल है। इस दरम्यान कोरोना के प्रकोप ने आग में घी का काम किया है। इस चुनौती से उबरने के लिए प्रमुख केंद्रीय बैंक अपने मुद्रा भंडार में सोने की मात्रा बढ़ा रहे हैं। इससे सोने की चाल थमने का नाम नहीं ले रही है। गिरती ब्याज दरों के कारण निवेशक गोल्ड म्यूचुअल फंड और ईटीएफ में जमकर पैसा लगा रहे हैं, जिनमें उन्हें पिछले एक साल में 45 फीसद से अधिक का रिटर्न मिल चुका है।
मौजूदा परिदृश्य में विशेषज्ञ सोने में अभी अच्छी खासी तेजी देख रहे हैं। अगले एक साल में इसका भाव 70,000 पर पहुंचने का अनुमान है। इसमें दो राय नहीं कि लंबी अवधि के निवेश के लिए सोना हमेशा आकर्षक विकल्प साबित हुआ है। कोई मौजूदा स्तर पर छोटी अवधि के लिए यह सोच कर निवेश करे कि आगे भी ऐसा ही रिटर्न मिलेगा तो यह जोखिम भरा कदम साबित हो सकता है।
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