नेपाल की नासमझी
नई दिल्ली के तमाम कूटनीतिक प्रयासों और द्विपक्षीय वार्तालापों के बावजूद जो संकेत मिल रहे हैं, वे यह हैं कि कम्युनिस्ट चीन की विस्तारवादी-साम्राज्यवादी आक्रामक गतिविधियों में कोई कमी नहीं आ रही है।
नेपाल की नासमझी |
भारत-चीन सीमा के पश्चिमी सेक्टर (पूर्वी लद्दाख) में चीन बार-बार स्थिति को उलझा रहा है और इस क्षेत्र की यथास्थिति को बदलना चाहता है। इसी बीच उसने आमतौर पर गैर विवादित माने जाने वाला मध्य सेक्टर (उत्तराखंड) में अपनी सैनिक गतिविधियां बढ़ा दी है। ऐसी रिपोर्ट है कि चीन ने उत्तराखंड के लिपूलेख र्दे से लगे अपने क्षेत्र में एक बटालियन (करीब एक हजार सैनिक) को तैनात किया है। हालांकि भारत पहले से सजग है।
उसने अपनी सीमाओं की सुरक्षा से संबंधित आवश्यक कदम उठाए हैं। बिना हिचक यह कहा जा सकता है कि गैरविवादित माना जाने वाला मध्य क्षेत्र में चीन ने जो स्थिति पैदा की है, उसके लिए नेपाल पूरी तरह जिम्मेदार है। पिछले दिनों नेपाली प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली की सरकार ने कालापानी क्षेत्र को अपने राजनैतिक नक्शे में शामिल करके इस इलाके को विवादित बना दिया है।
कहा जा रहा है कि चीन के शह पर ही नेपाल ने ऐसा दु:साहस किया है। हालांकि नेपाल की इस कवायद से जमीनी स्तर पर कोई बदलाव नहीं होने वाला है, लेकिन इससे भारत के खिलाफ चीन को एक मुद्दा मिल गया। भारत, चीन और नेपाल की सीमा पर स्थित कालापानी का इलाका करीब 200 वर्षो से भारत का हिस्सा है। अभी लिपूलेख के पास भारत ने मानसरोवर जाने के लिए एक नई सड़क का निर्माण किया है। भारत के लिए यह क्षेत्र सामरिक महत्त्व का है। ओली सरकार जबसे सत्ता में आई है तब से वह कूटनीतिक नासमझी का परिचय दे रही है।
अब वह अपने विवादित नये नक्शे को गूगल, संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक समुदाय को भेजने की तैयारी कर रही है। वास्तव में चीन नेपाल की इस अदूरदर्शितापूर्ण कदमों का राजनीतिक लाभ उठाना चाहता है। वह लिपूलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा सीमा क्षेत्र में अपने सैनिकों की तैनाती करते हुए एक ओर भारत को डराना चाहता है वहीं दूसरी ओर नेपाल को यह जताना चाहता है कि कालापानी विवाद में वह नेपाल के साथ है। नेपाल स्वतंत्र और संप्रभु देश है। भारत उसका सम्मान करता है, लेकिन अगर वह चीन के साथ मिलकर भारत को दबाना चाहता है तो यह उसकी भूल होगी। भारत भी अपने हितों की रक्षा करना जानता है।
Tweet |