मौत का जाम
पंजाब में जहरीली शराब से हुई मौतें वाकई हैरान-परेशान करने वाली हैं। 86 लोग मौत के मुंह में समा गए हैं और कई मरणासन्न हैं।
मौत का जाम |
शासन की नाक के नीचे यह सब गोरखधंधा चलता रहा और सब अपनी धुन में मस्त रहे। यह वाकई शर्म की बात है। आश्चर्य की बात है कि सबसे ज्यादा मौतें जिले के सदर और शहरी इलाकों में हुई हैं। यानी शहरी इलाकों में ऐसा खुलेआम होता रहा और संबंधित एजेंसियां लंबी तानकर सोए रहे। सिर्फ तरनतारन जिले में 42 लोगों की मौत की खबर है।
हालांकि जैसा कि हर घटना पर होता है, पंजाब सरकार ने मजिस्ट्रेटी जांच के आदेश दिए हैं मगर ऐसी वारदात का होना यही बताता है कि तंत्र की विफलता से ही इस तरह के अपराध फलते-फूलते हैं। अब अपनी नाक बचाने को पुलिस ने 18 लोगों को गिरफ्तार जरूर किया है, लेकिन बड़ी मछलियां बिंदास भ्रमण कर रही हैं। दरअसल, यह व्यवस्था पर सवाल है, जिम्मेदार विभाग भी कटघरे में खड़े हैं। शराब का जहरीला हो जाना सिर्फ हादसा नहीं है व्यवस्था में कहीं-न-कहीं खोट है। लापरवाही है, जिसका अंजाम समाज को भुगतना पड़ रहा है।
वारदात के कई घंटे बाद जागे प्रशासन ने मामले की जांच तो शुरू कर दी है पर, सवाल अपनी जगह कायम है, कि ये शराब जहरीली कैसे हो जाती है? आबकारी महकमे की लंबी-चौड़ी फौज को यह तक पता नहीं चल पाता है कि उनके यहां क्या कुछ हो रहा है? वैसे ये हर राज्य की कहानी है। पिछले साल फरवरी में उत्तर प्रदेश के कई जिलों में जहरीली शराब से 70 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी।
वहीं इसी साल मई में मेरठ में ऐसी ही वारदात हुई थी। यानी यह न रुकने वाला सिलसिला है। हां, अगर सरकार कठोर रुख अपनाए और नियोजित तरीके से इस पर रोकथाम के उपाय तलाशे तो निश्चित तौर पर निदरेष लोगों को अपनी जान नहीं गंवानी पड़ेगी। अफसरों के निलंबन और छोटी मछलियों की गिरफ्तारी से कुछ हासिल नहीं होने वाला। जहरीली शराब के सेवन से होने वाली जनहानि, अपंगता और गम्भीर शारीरिक क्षति के प्रकरणों में प्रभावी रूप से मामले दर्ज करने चाहिए। यदि दोषी अवैध शराब का निर्माण या तस्करी दोबारा करते हैं तो उनके खिलाफ गैंगस्टर एक्ट तथा राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के अंतर्गत मुकदमा दायर हो, तभी इस महासकंट से निजात पाई जा सकती है।
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