सेना को खुली छूट
सरकार द्वारा चीन से लगी नियंत्रण रेखा पर सेना को निपटने की पूरी आजादी अत्यंत महत्त्वपूर्ण निर्णय है।
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पूरी आजादी का मतलब यह हुआ कि अब सेना पर चीन के साथ हुए समझौतों के कारण कभी हथियार का प्रयोग न करने का मार्ग-निर्देश लागू नहीं रहेगा। सेना के फील्ड कमांडरों को परिस्थितियों को देखकर फैसला लेने का अधिकार मिल गया है। हालांकि चीनी सैनिकों ने मान्य हथियारों का प्रयोग नहीं किया, लेकिन जो हुआ वह खूनी संघर्ष ही तो था। अगर उस हालात में हमारे जवानों ने अपने से दोगुनी संख्या में चीन के जवानों को खेत कर दिया तो साफ है कि अगर उन्हें जैसे को तैसे का अधिकार होता तो वे वो कार्रवाई कर देते जिसे चीनी सेना शायद ही कभी भूल पाती।
1996 और 2005 के समझौतों के अनुसार दोनों ओर की सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा के दो किलोमीटर तक किसी तरह के तनाव की स्थिति में हथियारों का उपयोग नहीं करेगी। चूंकि चीन ने इस मर्यादा को तोड़ दिया है, भारत के लिए उससे तत्काल बंधे रहने का कोई मतलब नहीं है। अब चीन की सेना जिस तरह से पेश आएगी भारतीय सेना भी उसी तरह जवाब देगी। आवश्यकता पड़ने पर फील्ड कमांडर जवानों को गोलियां चलाने का आदेश भी दे सकते हैं। 16 जून से सरकार ने जो भी निर्णय किया है, उससे ऐसा लगता है कि भारत अब चीन पर किसी तरह विश्वास करने को तैयार नहीं है और अपनी रक्षा व्यवस्था ऐसी करना चाहता है ताकि किसी तरह की स्थितियों से निपटा जा सके।
सेना के तीनों अंगों को प्रति परियोजना हथियार और गोला बारूद खरीदने के लिए 500 करोड़ रुपये तक खर्च करने की आपात वित्तीय शक्तियां देना इसी सोच से निकला फैसला है। अब थल सेना, वायुसेना और नौसेना वास्तविक नियंत्रण रेखा पर वर्तमान आवश्यकता में तैयारियों को सशक्त करने के लिए तो हथियार और साजो-सामान खरीदेगी ही प्रतिकूल परिस्थितियां उत्पन्न होने पर कार्रवाई के लिए स्वयं ऐसा कर सकेगी। सेना को पहले से ही हाई अलर्ट किया जा चुका है तथा लामबंदी पूरी नियंत्रण रेखा के सपास बढ़ रही है।
इस तरह एक दुश्मन देश के खतरे को देखते हुए किसी सतर्क देश को जिस सीमा तक तैयार होना चाहिए उस सीमा तक भारत चला गया है। हालांकि पहले से भी पश्चिम से लेकर पूरब तक नियंत्रण रेखा का ध्यान रखते हुए आधारभूत संरचनाओं का संतोषजनक विकास किया जा चुका है, जिसमें चीन को किसी तरह की धोखेबाजी और साजिश रचने का मौका नहीं मिल सकता।
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