नेपाल का दुष्प्रचार
भारत के लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को नेपाली भूभाग बताने वाले अपने दावे को मजबूत करने के लिए नेपाल अब भारत विरोधी दुष्प्रचार पर उतर आया है।
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इसके लिए वह एफएम रेडियो चैनलों का सहारा ले रहा है। सीमा के पास रहने वाले भारतीयों का कहना है कि नेपाल के चैनलों द्वारा प्रसारित गीतों या अन्य कार्यक्रमों के बीच में भारत के लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को वापस किए जाने की मांग करने वाले भारत विरोधी भाषण दिए जा रहे हैं। इन चैनलों में नया नेपाल और कालापानी रेडियो प्रमुख है। वैसे इन एफएम चैनलों की क्षमता ज्यादा नहीं है, लेकिन इससे नेपाल की भारत के प्रति मंशा तो उजागर हो ही जाती है। यह तो सर्वज्ञात है कि नेपाली संसद ने हाल ही में एक मानचित्र को स्वीकृति दी है, जिसमें लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को नेपाली भूभाग बताया गया है।
ऐसे में नेपाल के चैनलों की यह गतिविधि वहां की सरकार की मंशा की अभिव्यक्ति ही मानी जाएगी। यह और बात है कि नेपाल के चैनलों के कार्यक्रमों के भारतीय श्रोताओं को इससे धक्का लगेगा, क्योंकि दोनों देशों के बीच सदियों पुराने सांस्कृतिक रिश्ते रहे हैं। स्थानीय लोग इससे भले ही उद्वेलित हों, लेकिन वहां का प्रशासन इस मसले पर अपनी अनभिज्ञता प्रकट कर रहा है। भारत को इससे निपटने पर ध्यान देना होगा। बहरहाल, यह सब नेपाल के उस आश्वासन के खिलाफ है, जो 2017 में वहां की देउबा सरकार ने भारत को दिया था। इसके मुताबिक नेपाल अपनी भूमि का भारत के खिलाफ कभी भी इस्तेमाल नहीं होने देगा, लेकिन इन तीन वर्षो में भारत-नेपाल संबंधों में काफी बदलाव आ चुका है। नेपाल में सत्ता बदली, तो भारत के साथ रिश्ते भी बदले।
माना जा रहा है कि वहां की ओली सरकार ने अपने आंतरिक राजनीतिक संकट से उबरने के लिए भावनात्मक उभार वाला ऐसा राष्ट्रवादी कदम उठाया, जिससे दोनों देशों के रिश्तों में खटास आ गई। पर यह इतना सरल भी नहीं लगता। बताया जा रहा है कि चीन की मदद से उनकी सत्ता बची हुई है। अगर यह सच है, तो नेपाल की ओली सरकार इसके बदले में चीन को उसके अहसान की कीमत अदा करना चाहेगी। यह चीन के हित में होगा कि भारत को एक अन्य मोच्रे पर उलझाया जाए, लेकिन भारत को धैर्य का परिचय देना होगा।
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