पहले वर्ष की चुनौतियां
नरेन्द्र मोदी द्वितीय सरकार की पहली वार्षिकी जिन परिस्थितियों में बीत गई उसे ही कहते हैं नियति। हमारे जीवन में ऐसे लोग मिलते हैं, जो नियति जैसे शब्द को खारिज करते हैं।
पहले वर्ष की चुनौतियां |
किंतु इसके लिए आप क्या शब्द प्रयोग करेंगे? एक वर्ष पूर्व शपथ लेते समय प्रधानमंत्री एवं मंत्रियों ने दु:स्वप्नों में भी कल्पना नहीं की होगी उन्हें अपनी पहली वार्षिकी विश्व सहित भारत के कोरोना के समक्ष त्राहिमाम के बीच मनानी होगी। वास्तव में यह ऐसा समय था जब भाजपा जैसी उत्सवधर्मी पार्टी अवश्य ही कई तरह के जश्न का कार्यक्रम कम से कम सप्ताह या उससे ज्यादा समय तक चलाती। कोरोना संकट के बीच ऐसा करना असुंदर, अप्रिय एवं अमानवीय दृश्य उत्पन्न करता।
वास्तव में प्रधानमंत्री ने देशवासियों के नाम जो पत्र लिखा उसमें सारी बातें समामहित थीं। देश के नेता के नाते आम नागरिकों को विश्वास दिलाना था कि हम इस संकट से उबरकर उस लक्ष्य को जरूर पाएंगे। सरकार के आरंभ से लेकर कोरोना तक के कार्यक्रमों का संक्षिप्त विवरण, भावनात्मक रूप से देशवासियों के साथ जुड़ना तथा इन परिस्थितियों में सरकार सहित सबके दायित्वों की याद दिलाने की कोशिश उन्होंने की। पत्र का लिखित एवं ऑडियो संस्करण दोनों उपलब्ध है।
हालांकि आजकल पता नहीं क्यों भाजपा के मंत्रियों एवं नेताओं के बीच समाचार पत्रों का लेखक बनने की अघोषित प्रतिस्पर्धा चल रही है और कई ने एक वर्ष पूरा होने पर लेख लिखे जो अलग-अलग अखबारों में प्रकाशित भी हुए। कुछ टीवी चैनलों ने प्रमुख नेताओं के साक्षात्कार भी चलाए। किंतु दो वर्ष पूरे होने पर प्रधानमंत्री एवं वे मंत्री जो देश तथा दल की चिंता करने हैं, न प्रसन्न होंगे, न संतुष्ट और न भविष्य को लेकर उनके अंदर आस्ति का भाव ही होगा।
आखिर कोरोना की मार जीवन के हर क्षेत्र पर पड़ी है। इसमें प्रधानमंत्री ने जितने महत्त्वाकांक्षी सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक विकास की योजनाएं घोषित की हैं; उन सबका समयबद्ध तरीके से पूरा होने पर प्रश्न खड़ा हो गया है। भारत के उत्थान को रोकने के लिए चीन सीमा पर स्वयं, पाकिस्तान तथा नेपाल के माध्यम से जिस तरह की बाधाएं पैदा कर रहा है, वो हमारी रक्षा, सुरक्षा एवं कूटनीति के लिए बहुत बड़ी चुनौती बनकर खड़ी है। उसी तरह धारा 370 हटाने के साथ पूरी तरह रु का दिख रहा आतंकवाद अब फिर से सिर उठा चुका है।
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