न्यायालय का सही वक्तव्य

Last Updated 29 May 2020 05:34:40 AM IST

उच्चतम न्यायालय का यह कहना महत्वपूर्ण है कि जिन अस्पतालों को मुफ्त या अत्यंत कम मूल्य में जमीन मिली है, उन्हें कोरोना मरीजों का मुफ्त इजाज करना चाहिए।


न्यायालय का सही वक्तव्य

आज का सच यह है कि निजी अस्पताल उन सारे मरीजों से मोटी रकम वसूल रहे हैं जो उनके यहां इलाज कराने को प्राथमिकता देते हैं। उच्चतम न्यायालय ने इस आशय की याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार से कहा कि उन अस्पतालों की सूची बनाकर उनकी पहचान करे जो कोविड-19 के मरीजों का मुफ्त या कम खर्च में इलाज कर सकते हैं।

ध्यान रखिए, यह आदेश प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने दिया है जिसमें न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति ऋषिकेश राय शामिल हैं। पीठ ने साफ कहा और यह सच है कि ऐसे बड़े निजी अस्पताल कम ही हैं, जिन्हें मुफ्त या बेहद कम दामों पर जमीन आवंटित नहीं की गई है। इनमें केवल धर्मार्थ अस्पताल ही नहीं हैं।

अनेक ट्रस्टों के नाम से, महापुरु षों के नाम से तथा सेवा के नाम पर भी ऐसे अस्पताल चल रहे हैं,  जिनकी व्यवस्था और जिनका शुल्क पंचतारा अस्पतालों की तरह है। जमीन देते समय उनसे लिखित वायदा लिया गया था कि अपने अस्पताल में एक निश्चित मात्रा गरीबों के लिए नि:शुल्क इलाज करेंगे। उनमें गरीबों के लिए मुफ्त बेड, कमरे, आईसीयू, ऑपरेशन सब शामिल हैं।

किंतु ये अस्पताल दिखावे के लिए लिख तो देते हैं कि गरीबों के लिए उनके यहां आज कितने बेड आदि खाली हैं, लेकिन व्यवहार में कुछ नहीं होता। कायदे से इन अस्पतालों को ऐसे ही कोविड-19 मरीजों को सामान्य मरीजों के लिए रियायती दर तथा गरीबों के लिए उनके लिए निर्धारित संख्या के मुफ्त इलाज की व्यवस्था करनी चाहिए थी। इन्होंने ऐसा किया नहीं है। अब सरकार अगले सप्ताह उन अस्पतालों की सूची लेकर उच्चतम न्यायालय आएगी और उसके बाद फैसला सामने आ सकता है। स्वास्थ्य राज्यों का विषय है।

अस्पतालों को जमीन भी राज्य सरकारें ही देती हैं। इसलिए इसमें राज्य सरकारों की ही मुख्य भूमिका होगी। केंद्र केंद्रशासित प्रदेशों तक भूमिका निभा सकता है। किंतु सभी राज्यों से ऐसे अस्पतालों की सूची मंगाकर उच्चतम न्यायालय में प्रस्तुत कर सकता है। उसके आधार पर आए न्यायालय के आदेश के पालन की जिम्मेवारी उन अस्पतालों की होगी और न मानने पर राज्य सरकार कार्रवाई कर सकेगी।



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