वार्ता से ही होगा समाधान
पिछले कुछ दिनों से लद्दाख में चीन के साथ सटी सीमा पर व्याप्त तनाव को दूर करने के लिए भारत ने स्थानीय सैनिक स्तर पर और कूटनीतिक स्तर पर सक्रिय प्रयास किए ताकि तनाव को आगे बढ़ने से रोका जा सके।
वार्ता से ही होगा समाधान |
इस प्रयास के सकारात्मक परिणाम सामने आए। चीन की ओर से नरम रुख अपनाते हुए कहा गया कि भारतीय सीमा पर हालात स्थिर और नियंत्रण में हैं। साथ ही, दोनों देशों के पास बातचीत और विचार-विमर्श करके मुद्दों को हल करने के लिए उचित तंत्र और संचार माध्यम हैं। इसी बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और चीन के बीच मध्यस्थता की पेशकश करके भारत-चीन के सीमा विवाद को नया आयाम देने की कोशिश की है। ट्रंप की इस पेशकश पर भारत और चीन, दोनों देशों की ओर से अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन लोगों को याद होगा कि पिछले दिनों कश्मीर के मुद्दे पर भी भारत और पाकिस्तान के बीच ट्रंप ने मध्यस्थता की पेशकश की थी जिसे भारत ने खारिज कर दिया था। ट्रंप ने भारत और चीन के बीच पहली बार मध्यस्थता की पेशकश की है।
वह भी ऐसे समय में जब चीन और अमेरिका के बीच व्यापार और कोरोना महामारी को लेकर शीत युद्ध चल रहा है। भारत और चीन के बीच ताजा मतभेद को लेकर चीन की नरम प्रतिक्रिया और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के मध्यस्थता संबंधी बयान का स्पष्ट अर्थ है कि दुनिया में किसी भी समस्या का निराकरण शांतिपूर्ण वार्ता के जरिए ही संभव है। भारत और चीन तथा भारत और नेपाल के बीच जारी सीमा विवाद को कूटनीतिक स्तर पर बातचीत के जरिए ही सुलझाया जा सकता है। विशेषकर ऐसे समय में तो संवाद और बातचीत का ज्यादा महत्त्व है, जब कोरोना वायरस महामारी के विरुद्ध पूरा विश्व जंग लड़ रहा है। हालांकि चीन पर इन बातों का कितना असर होगा कहना
मुश्किल है क्योंकि वह दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भी विस्तारवादी नीति में विश्वास रखता है। इसलिए चीन के साथ सावधानी बरतने की जरूरत है। वह लद्दाख और पूर्वोत्तर के राज्यों को अवैध तरीके से अपने अधिकार क्षेत्र में लाना चाहता है। इसलिए भारत से सटी सीमाओं पर उसके सैनिक अक्सर अतिक्रमण करते रहते हैं। नेपाल ने भी भारत की कड़ी आपत्ति के बाद लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को लेकर जारी सीमा विवाद को ठंडे बस्ते में डाल दिया है।
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