चीन से तनाव
भारत और चीन के बीच बढ़ते तनाव की गंभीरता का पता इसी से चलता है कि एक दिन में पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चारों जनरलों के साथ बैठक की और उसके बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत और तीनों सेनाओं के प्रमुखों के साथ बैठक की जिसमें बाह्य सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए भारत की सैन्य तैयारियों को मजबूत बनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
चीन से तनाव |
वैसे अधिकारियों का कहना था कि प्रधानमंत्री की पूर्व निर्धारित बैठक का एजेंडा महत्त्वाकांक्षी सैन्य सुधार के बारे में चर्चा करना था। किंतु इसमें पूर्वी लद्दाख की स्थिति पर भी पूरी चर्चा हुई। जैसा हम जानते हैं कि पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग झील, गलवान घाटी, डेमचोक और दौलत बेग ओल्डी में पिछले करीब 20 दिनों से भारत और चीन के बीच तनाव बना हुआ है।
चीनी सैनिकों ने बाजाब्ता भारतीय सीमा में प्रवेश करके मारपीट की जिसमें दोनों ओर से घायल हुए। छह दौर की औपचारिक बातचीत बेनतीजा रही क्योंकि चीन पीछे हटने की जगह पैंगोंग झील तथा गलवाना घाटी की ओर न केवल तंबू लगाए हैं, बल्कि बंकर खोदने की भी कोशिश कर रहे हैं। इस बीच खबर यह भी है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनिपंग ने संसद सत्र के दौरान पीपुल्स लिबरेशन आर्मी और पीपुल्स आम्र्ड पुलिस फोर्स के प्रतिनिधियों की पूर्ण बैठक में हिस्सा लेते हुए कहा है कि सबसे खराब स्थिति की कल्पना करो, युद्ध की तैयारियां करो तथा पूरी दृढ़ता से देश की संप्रभुता की रक्षा करो।
यह बयान किस संदर्भ में है, यह कहना जरा कठिन है लेकिन यह असाधारण है। दरअसल, भारत उन क्षेत्रों के अपने भाग में सड़क सहित अपनी आधारभूत परियोजनाओं पर तेजी से काम कर रहा है, जिसे चीन रोकना चाहता है। मजे की बात देखिए कि चीन ने अपनी ओर तो सड़कों सहित सारी सुविधाएं विकसित कर ली हैं, लेकिन भारत के अपने क्षेत्र में ऐसा करना उसे सहन नहीं हो रहा। चीन अगर अपनी सामरिक स्थिति को ध्यान में रखकर निर्माण करता है, तो हमें अपनी स्थिति का ध्यान रखना है।
वास्तव में चीन का सैन्य दबाव आपत्तिजनक है। भारत को किसी सूरत में दबाव में नहीं आना चाहिए, आधारभूत संरचना के विकास को जारी रहना चाहिए और इसमें चीन जो भी कदम उठाए उसका करारा प्रत्युत्तर देने की पूरी तैयारी हो। देश को हर स्थिति का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार होना होगा।
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