सियासत नहीं एकता जरूरी
भारत जैसे पिछड़े और अविकसित देश का दुर्भाग्य ही है कि कोरोना वायरस महामारी के विरुद्ध जहां एक ओर चिकित्साकर्मी, सफाईकर्मी, पुलिसकर्मी और प्रशासन तंत्र जंग लड़ रहे हैं, तो दूसरी ओर राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे पर कीचड़ उछाल रही हैं।
सियासत नहीं एकता जरूरी |
कह सकते हैं कि कोरोना वायरस महामारी और इसकी रोकथाम के लिए लागू किया गया लॉकडाउन अब पूरी तरह से सियासत की भेंट चढ़ चुका है। लॉकडाउन लगाने और इसे शिथिल करने को लेकर कांग्रेस और भाजपा आमने-सामने आ गए हैं। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ नेता राहुल गांधी का विश्वास है कि लॉकडाउन विफल हो गया है।
वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से यह जानना चाहते हैं कि लॉकडाउन की विफलता के बाद अब आगे कोरोना संकट से निपटने के लिए सरकार के पास रणनीति क्या है। राहुल गांधी का केंद्र सरकार पर यह भी आरोप है कि भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है कि जब कोरोना महामारी अपने चरम पर पहुंच रहा है तो लॉकडाउन हटाया जा रहा है। राहुल गांधी को जवाब देने के लिए केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने मोर्चा संभाला। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी कोरोना और लॉकडाउन जैसे मसलों पर दोगलेपन की राजनीति कर रही है।
क्या यह भारतीय राजनीति की विडंबना नहीं है कि जब सत्ता पक्ष और विपक्ष को एकजुट होकर कोरोना वायरस जैसी जानलेवा महमारी से लड़ने की जरूरत है तब राजनीतिक पार्टियां ओछी राजनीति कर रहीं हैं। कांग्रेस पार्टी पहले भी आरोप लगा चुकी है कि मोदी सरकार योजनाबद्ध तरीके से लॉकडाउन लागू करने में विफल रही है। इसी का नतीजा है कि प्रवासी मजदूरों का शहरों से अपने गांव और कस्बों की ओर पलायन करने से लॉकडाउन का पूरा फायदा नहीं मिल सका। कांग्रेस के इस आरोप में सचाई के अंश हैं। इसलिए इसे सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता।
केंद्र सरकार और उसके प्रशासनिक अफसरों की असफलता रही है कि प्रवासी मजदूर लॉकडाउन की योजना से बाहर रह गए। इसका खमियाजा मजदूरों सहित पूरे देश को भुगतना पड़ रहा है। इस संकट के समय यह अपेक्षा की जाती है कि विपक्ष बेवजह सरकार की आलोचना न करे और सरकार महामारी से निपटने के संबध में विपक्ष से सलाह-मिरा करे। देश और विदेश में यही संदेश जाना चाहिए कि कोरोना काल में हम एक हैं।
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