आगे डरावना संकट
कोरोना महामारी अभी तक नियंत्रण से पूरी तरह बाहर है। एक ही दिन में बीते मंगलवार को 24 घंटे में संक्रमित होने वालों का आंकड़ा 4178 था और मृतकों का आंकड़ा 210 था।
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कुल संक्रमितों की संख्या 46711 हो गई है। ये आंकड़े स्पष्ट संकेत कर रहे हैं कि अगले 15 दिनों में संक्रमितों की संख्या 1 लाख तक और मृतकों की संख्या करीब 3000 के पास पहुंच जाएगी। अगर इस रफ्तार पर अगले 15 दिनों में कोई प्रभावी नियंत्रण नहीं लगा तो हालात काबू से बाहर हो सकते हैं।
इस समय संकट जिस शक्ल में दिखाई दे रहा है, वह अर्थव्यवस्था का संकट है जो केवल मजदूर-किसानों में ही नहीं बल्कि निम्न और मध्य वर्ग भी तेजी से आर्थिक परेशानियों की जद में आ रहे हैं। उधर सरकार की स्थिति सांप और छूछूंदर जैसी है। उसे न निगलते बन रहा है और न उगलते। अगर वह कड़ाई से नियंत्रण लागू करती है तो करोड़ों लोग रोजगारविहीनता के कारण भुखमरी के शिकार हो सकते हैं।
और अगर सरकार ढिलाई देती है तो कोरोना काबू से बाहर हो सकता है। सरकार ने शराब की दुकानें खोल कर थोड़ा सा राजस्व जुटाने का प्रयास किया, लेकिन जो दृश्य दिखाई पड़े वे सचमुच चिंताजनक थे। भीड़ दारू की एक बोतल के लिए कुछ भी करने पर आमादा थी। ज्यादातर जगहों पर सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ गई। यह वह स्थिति थी, जो सरकार की असुविधा को पूरी तरह सामने ला रही थी। करे तो कुंआ न करे तो खाई। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि विपक्ष ने और मोदी विरोधियों ने जैसे सबकुछ सरकार के पाले में छोड़ दिया हो।
और वे मोदी के असफल होने की कामना कर रहें हों, जबकि इस डरावने समय में हर वर्ग, हर समूह को चाहे वे राजनीतिक दल हों, धार्मिक-सामाजिक संस्थाएं हों, सभी को अपने-अपने अनुयायियों का आह्वान करना चाहिए था कि वे जनता के बीच सक्रिय होकर उसे कोरोना की भयावहता को समझाते और लोगों को सुरक्षित और नियंत्रित व्यवहार करने के लिए प्रेरित करते। अभी भी समय है अगर वे ऐसा करते हैं तो देश को अकल्पनीय संकट से बचाया जा सकता है, अन्यथा आने वाला संकट बहुत बड़ा होगा, जिसे पूरा देश मिलकर भी संभाल नहीं पाएगा। सबसे बड़ी बात यह है कि विपक्षी दल तथा मोदी विरोधी शक्तियां भी इस संकट से अछूते नहीं रहेंगे। इसलिए विपक्ष को इस महामारी से लड़ने के लिए सरकार की आलोचना के बजाय उसके साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर खड़ा होना चाहिए।
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