आतंकवाद सहन नहीं

Last Updated 06 May 2020 12:33:43 AM IST

कश्मीर में तीन दिनों के अंदर तीन आतंकवादी हमलों ने शांत होती दिख रही घाटी में फिर एक बार हिंसा और विध्वंस का डर पैदा किया है।


आतंकवाद सहन नहीं

कुपवाड़ा जिले के हंदवाड़ा में पांच जवानों के बलिदान का घाव अभी ताजा ही था कि सीआरपीएफ के तीन जवानों की बलि चढ़ गई। दो मई की घटना में तो राष्ट्रीय रायफल एवं पुलिस के पांच जवान बंधकों को छुड़ाने के अभियान में आतंकवादियों की गोली का शिकार हो गए, लेकिन 4 मई को तो घात लगाए आतंकवादियों ने बाजाब्ता सीआरीपीएफ द्वारा लगाए गए नाके पर हथगोलों और गोलियों से हमला किया और वहीं तीन को मौत की नींद सुलाकर तथा सात जवानों को घायल कर फरार हो गए।

पूर्व घटना में कम-से-कम लश्कर-ए-तैयबा के दो आतंकवादी मारे भी गए। इसमें कोई आतंकवादी घायल तक नहीं हुआ। इसी दिन श्रीनगर में सीआईएसफ की पेट्रोलिंग पार्टी पर हथगोला फेंका गया। यह सही है कि अप्रैल-मई में बर्फ पिघलने के कारण पाकिस्तान आतंकवादियों की घुसपैठ कराता है और इसके लिए वह युद्धविराम का उल्लंघन कर गोलीबारी करता है। सेना प्रमुख और प्रधानमंत्री के बयानों के बाद यह संकेत मिलता है कि सरकार फिर से किसी बड़े ऑपरेशन की तैयारी कर रही है। सीमा पार से आतंकवाद के प्रायोजन के रोकने के लिए पाकिस्तान को सबक सिखाना ही होगा, किंतु अपने अंदर की स्थिति को भी दुरुस्त करना जरूरी है।

अनुच्छेद 370 हटाने और जम्मू-कश्मीर लद्दाख को विभाजित कर केंद्रशासित प्रदेश बनाने के साथ जिस तरह की सुरक्षा व्यवस्था की गई; उसके बाद आतंकवादियों के लिए वहां सक्रिय रहना नामुमकिन हो गया था। उनके समर्थकों के खिलाफ कर्रवाई से माहौल काफी बेहतर हुआ। जाहिर है, लंबे समय से आतंकवाद से ग्रस्त राज्य को सामान्य बनाने के लिए उस तरह की कठोर सुरक्षा व्यवस्था का लंबे समय जारी रहना अपरिहार्य है। अगर अंदर शांति रहेगी तो सीमा पार दुश्मन से निपटने में आसानी होगी।

पाकिस्तान हर हालत में जम्मू-कश्मीर को आतंकवाद और अलगावाद की आग में झोंकने की रणनीति पर काम कर रहा है। और इस साजिश को  विफल करना ही होगा। कश्मीर में चाहे संचार व्यवस्था को फिर से प्रतिबंधित करना पड़े या आवागमन एवं अन्य गतिविधियों को कुछ समय के लिए बाधित करना हो, आतंकवाद के समूल नाश के लिए यह कदम उठाना ही होगा।



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