विश्राम नहीं सावधान
भारत में कोरोना महामारी का फैलाव अमेरिका और यूरोप के देशों के मुकाबले भले ही कम है, लेकिन यह सोचकर विश्राम की मुद्रा में नहीं आ जाना चाहिए कि महामारी पूरी तरह नियंत्रण में है और कोरोना के विरुद्ध संघर्ष में हमने विजय पा ली है।
विश्राम नहीं सावधान |
धीरे-धीरे ही सही लेकिन कश्मीर से कन्याकुमारी तक इस महामारी का प्रकोप बढ़ रहा है। सरकार के आंकड़ों के अनुसार कोरोना संक्रमण के मामले बीते बृहस्पतिवार को 5700 हो गए जबकि इस महामारी से हुई मौत का आंकड़ा 166 पर पहुंच गया।
लॉक-डाउन का आज 17वां दिन है। और इसकी मियाद 14 अप्रैल को खत्म हो रही है। गौर करने वाली बात है कि यह आंकड़े हर क्षण बदल रहे हैं। इसलिए इसे अंतिम नहीं माना जाए। भारत में अभी कोरोना महामारी का चरम बिंदु आना बाकी है। जाहिर है ऐसे हालात में लॉक-डाउन का बढ़ना लभगभ तय है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 130 करोड़ देशवासियों को अपना सारथी बनाकर कोरोना के विरुद्ध निर्णायक लड़ाई लड़ रहे हैं और समूचे देश को उम्मीद है कि कोरोना का अंत भारत में ही होगा।
लेकिन उससे पहले इस महामारी के फैलाव को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश और दिल्ली की सरकारों ने एक बड़े फैसले के तहत ऐसे इलाकों को विशेष रूप से चिह्नित किया है जहां कोरोना संक्रमित मरीज सबसे ज्यादा हैं। उत्तर प्रदेश में ऐसे 15 जिलों को 15 अप्रैल तक सील किया गया है, जबकि दिल्ली में 20 ऐसे हॉटस्पाट हैं, जिन्हें सील किया गया है। जाहिर है सरकार की कठोर कदम का सकारात्मक असर होगा। लेकिन कोरोना महामारी का सर्वाधिक दुखद पहलू यह है कि समाज का एक छोटा सा तबका कोरोना के विरुद्ध लड़ाई में डरावना असहयोग कर रहा है।
अपने कर्त्तव्य पालन में लगे चिकित्साकर्मियों और पुलिसकर्मियों के साथ यह तबका अभद्रता का व्यवहार कर रहा है, उन पर हमले कर रहा है और तरह-तरह की अफवाह फैलाकर लोगों को कोरोना प्रसार विरोधी उपायों को न अपनाने के लिए उत्तेजित कर रहा है। तब्लीगी जमात ने न केवल हर कदम पर सरकारी प्रयासों में बाधा पहुंचाने की कोशिश की बल्कि कोरोना को भारतव्यापी बना दिया। स्वयं इनकी रक्षा के लिए और इनके संपर्क में आने वाले दूसरों की रक्षा के लिए सामाजिक आपातकाल के दौर में अगर पुलिस और प्रशासन ऐसे तत्वों के विरुद्ध कठोर कदम उठाता है तो इस काम में पूरे देश की जनता उनके साथ होगी।
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