न्याय में भरोसा
अंतरराष्ट्रीय न्यायिक सम्मेलन 2020 के उद्घाटन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारतीय न्यायपालिका की संवेदनशील मामलों में भूमिका तथा समाज के सकारात्मक व्यवहार की बात करके निश्चय ही बेहतर संदेश देने की कोशिश की है।
न्याय में भरोसा |
प्रधानमंत्री का यह कहना बिल्कुलल सही है कि हाल में आए कुछ संवेदनशील और बड़े फैसलों पर समाज की प्रतिक्रिया ने अनेक आशंकाओं को खत्म कर दिया है।
वास्तव में अयोध्या फैसले के पूर्व जितनी आशंकाएं प्रकट की गई वैसा देश में कुछ नहीं हुआ। यह साबित करता है कि न्यायपालिका को लेकर हमारे देश में अभी भी यह भाव है कि वो जो फैसला देगा वो बिल्कुल तथ्यों और सच्चाइयों के आधार पर होगा, निष्पक्ष होगा। अयोध्या मामले में सम्पूर्ण भारत ने शांत होकर फैसला स्वीकार किया। इसके पूर्व तीन तलाक पर फैसला देना भी आसान नहीं लग रहा था लेकिन न्यायालय ने दिया। इससे भारतीय समाज की परिपक्वता का भी प्रमाण मिलता है, जिसकी बुनियाद भारतीय संस्कारों में है।
कानून की सर्वोच्चता को मानने का हमारा विचार ही हर भारतीय की न्यायपालिका पर अगाध आस्था की बड़ी वजह है। इसका दूसरा अर्थ यह है कि समाज और सत्ता जिन जटिल मामलों से बचते हैं वो न्यायपालिका के जिम्मे आ जाता है। जैसा प्रधानमंत्री ने कहा न्यायपालिका ने हाल के फैसलों में विकास एवं पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन कायम किया है। आगे भी जटिल तथा देश के हित से जुड़े मामले विभिन्न रूपों में न्यायपालिका के सामने आते रहेंगे। जाहिर है, न्यायपालिका के लिए ये चुनौतियां ऐसी हैं, जिनके अनुरूप उसे संसाधनों तथा अन्य सहयोगी तत्वों से परिपूर्ण करना आवश्यक है।
स्वयं प्रधानमंत्री ने साइबर क्राइम और डाटा सुरक्षा जैसे मुद्दों की चर्चा की। लोगों को शीघ्र न्याय मिले यह विषय भी बड़ा चुनौतीपूर्ण है। प्रधानमंत्री ने इसके लिए आधुनिक तकनीकों की चर्चा की उसे व्यवहार में अपनाए जाने की जरूरत है। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि प्रक्रिया प्रबंधन और इंटरनेट आधारित तकनीक से न्याय उपलब्ध कराने में काफी सहूलियत होगी। इसमें नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड की स्थापना से भी कोर्ट की प्रक्रियाएं आसान होंगी। इस तरह प्रधानमंत्री ने न्यायतंत्र में तकनीक आधारित बदलाव की रूपरेखा प्रस्तुत की। किंतु इसे सोच से उतारकर पूरी तरह अमल में भी लाना होगा।
Tweet |