ममता-मोदी मुलाकात
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दो दिनी पश्चिम बंगाल दौरे में सियासी तल्खी गायब दिखी, जो ममता बनर्जी और मोदी के बीच पूर्व में दिखती रही है।
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दोनों नेताओं के बीच शिष्टाचार मुलाकात हुई, लेकिन राज्य की मुखिया ममता बनर्जी ने जिस तरह से नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को वापस लेने का अनुरोध प्रधानमंत्री से किया, शायद उससे बचा जा सकता था। स्वाभाविक तौर पर प्रधानमंत्री का यह दौरा सीएए और एनआरसी जैसे मसलों पर चर्चा करने का नहीं था। जब ममता ने प्रधानमंत्री से इस बाबत बात की तो उन्होंने दो टूक मुख्यमंत्री से इस बारे में दिल्ली आकर बात करने को कहा। यह सही भी है। अगर प्रधानमंत्री किसी अन्य उद्देश्य से किसी राज्य के दौरे पर हैं तो उनसे ऐसे गंभीर मुद्दे पर चर्चा करने का अनुरोध करना कहीं से भी उचित नहीं कहा जा सकता है।
प्रधानमंत्री का बिना लाग-लपेट के अपनी बात रखना बिल्कुल सही है। सीएए और एनआरसी का मामला बेहद संवेदनशील है, और फिर जब इसे देश की संसद ने पारित कर दिया और यह कानून की शक्ल ले चुका है तो इसे उसी रूप में हर किसी को स्वीकार करना चाहिए। इसमें मीन-मेख निकालना या इसे वापस करने का आग्रह करना देशहित में नहीं कहा जा सकता है। पहले भी इस संदर्भ में बहस हुई है कि जब राष्ट्रीय स्तर पर कोई कानून अमल में लाया गया है तो फिर किसी राज्य को यह अधिकार नहीं है कि वह इसे अपने राज्य में लागू नहीं करने की बात करे। खैर, इन सबके बावजूद दोनों नेताओं की मुलाकात इस मायने में महत्त्वपूर्ण कही जाएगी कि इनके बीच संवाद हुआ। पूर्व में पैदा तल्खी या कड़वाहट को इस दौरे में भूला दिया गया। लोकतंत्र में संवाद की बेहद अहम भूमिका होती है। सो, इस लिहाज से यह अच्छी बात हुई है। हालांकि प्रधानमंत्री से मुलाकात के तुरंत बाद ममता का सीएए और एनआरसी के विरोध में धरना दे रहे लोगों के बीच पहुंचना, सियासी पैंतरेबाजी के अलावा कुछ भी नहीं है। बार-बार सरकार की तरफ से नागरिकता कानून को लेकर व्याप्त भ्रम को दूर करने की कोशिश की गई है। इसके बावजूद इस मसले पर राजनीतिक रोटियां सेंकना किसी भी तरह से न्यायोचित नहीं है। यह बात न केवल ममता बल्कि हर किसी को समझने की महती जरूरत है।
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