हिंसा बिल्कुल अस्वीकार्य
राजधानी दिल्ली ने जिस तरह की आगजनी और हिंसा देखी वह हर किसी को भयभीत करने वाली है।
हिंसा बिल्कुल अस्वीकार्य |
संविधान हमें किसी भी मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन का अधिकार देता है। लेकिन वही संविधान हमारी सीमाएं भी बांधता है। सीमाएं यह है कि आप कानून को हाथ में नहीं ले सकते यानी हिंसा नहीं कर सकते। हिंसा करते ही आप अपराधी बन जाते हैं। दिल्ली की सड़कों पर बसों का जलाया जाना, प्रदर्शन के दौरान घरों पर पत्थर मारना, आपत्तिजनक नारे लगाना यह सब किसी लोकतांत्रिक अधिकार के तहत नहीं आता।
हमने दिल्ली के जामिया से लेकर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, जाधवपुर विश्वविद्यालय, पटना, लखनऊ के नदवा कॉलेज आदि में इसी तरह के डरावने नजारे देखें हैं। इसलिए ऐसे हर विरोध के खिलाफ कानून को अपना काम करना होगा। पुलिस की हम चाहे जितनी निंदा करें, लेकिन अभी तक इन विरोधों में एक भी गोली नहीं चली, जबकि भारी संख्या में पुलिस एवं दमकलकर्मी भी घायल हुए हैं। हमारा मानना है कि पुलिस सामान्यत: विश्वविद्यालय परिसर में बिना अनुमति के प्रवेश न करे।
बावजूद यदि पत्थर मारकर लोग परिसर के अंदर भागेंगे वह भी उस स्थिति में जब एक ओर धू-धू कर बसें जल रहीं हों तो व्यावहारिकता यही है कि पुलिस उनको खदेड़ते हुए अंदर चली जाएगी। उस समय वह अनुमति मांगने का इंतजार नहीं कर सकती। यह विश्वविद्यालयों का दायित्व है कि अपने यहां इस तरह की गतिविधियां रोकें। वैसे नागरिकता कानून का विरोध जिस आधार पर हो रहा है उसका कोई औचित्य नहीं है।
विरोध करने वाले कई जगह टीवी चैनलों पर यह कहते सुने गए कि मोदी ने मुसलमानों को देश से भगाने का लिए कानून बना दिया है। जो कानून पाकिस्तान में धार्मिंक रूप से उत्पीड़ित होकर आने वाले हिन्दुओं, सिखों, बौद्धों, जैनों, पारसियों और ईसाइयों को नागरिकता देने के लिए है, उसके बारे में यह भ्रम कहां से पैदा हो गया? संसद में गृहमंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि इससे किसी मुसलमान को भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है, यह नागरिकता देने के लिए है लेने के लिए नहीं।
वास्तव में कुछ समाज विरोधी तत्वों ने इस कानून को मुसलमान विरोधी होने का भ्रम फैलाया है। इसलिए जो है नहीं उसका विरेाध हो रहा है। जाहिर है, कुछ अवांछित ताकतें स्थिति का लाभ उठाने की कोशिश कर रहीं हैं। ऐसे तत्वों की पहचान कर उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। आपको यदि विरोध करना है तो जरूर करिए मगर अहिंसक और शांतिपूर्ण तरीके से।
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