राहुल की नासमझी
कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी भाजपा के प्रति अंधविरोध के चलते अनावश्यक और अनकहनी बात कहने के आदी हो गए हैं।
राहुल की नासमझी |
इस अंधविरोध की रौ में वह कभी-कभी ऐसी बेतुकी बात कह देते हैं, जिनसे दूसरे का तो कोई नुकसान नहीं होता, लेकिन स्वयं उनकी पार्टी जवाबदेही की स्थिति में आ जाती है। बीते शनिवार को उन्होंने दिल्ली में अपनी पार्टी की ‘भारत बचाओ’ रैली को संबोधित करते हुए अपनी ‘रेप इन इंडिया’ वाली टिप्पणी के लिए माफी मांगने से इनकार करते हुए कहा था कि मेरा नाम राहुल सावरकर नहीं, राहुल गांधी है।
मर जाऊंगा, लेकिन माफी नहीं मांगूंगा। उनके इस कथन पर उठा विवाद थम नहीं रहा है। कांग्रेस पार्टी भाजपा, शिवसेना और बसपा तीनों पार्टियों की आलोचना के केंद्र में आ गई है। महाराष्ट्र में शिवसेना के नेतृत्व वाली सरकार में कांग्रेस भी शामिल है और विनायक दामोदर सावरकर केवल भाजपा के ही नहीं, बल्कि शिवसेना सहित अन्य हिन्दू संगठनों के नायक हैं, जो गांधी की धारा से अलग क्रांति की धारा में विश्वास करते रहे हैं। हिन्दू संगठनों से जुड़े लोगों के मन में सावरकर का वही स्थान है जो भगत सिंह का है।
अगर भगत सिंह के नाम के आगे वे सम्मान से शहीद जोड़ते हैं तो सावरकर के आगे गर्व से वीर लगाते हैं। जहां तक अंग्रेजों से माफी मांगने का सवाल है तो भारत के स्वतंत्रता और क्रांतिकारी आन्दोलन इस तरह के माफीनामे से भरे पड़े हैं। दरअसल, इस संदर्भ में महत्त्वपूर्ण यह नहीं है कि उन्होंने किन परिस्थितियों में माफी मांगी बल्कि महत्त्वपूर्ण यह है कि सावरकर ने स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़ कर अपनी भूमिका निभाई। लेकिन राहुल गांधी जैसा व्यक्ति जिसे पैदाइशी नेतृत्व मिला हो, किसी भी व्यक्ति की संघषर्शीलता और उससे उत्पन्न कठिनाइयों का आकलन नहीं कर सकता अन्यथा राहुल गांधी सावरकर के बारे में ऐसी टिप्पणी करने से बचते।
सबसे अधिक दयनीय स्थिति उन कांग्रेसियों की हो जाती है जिन्हें राहुल के बयानों का बचाव करना पड़ता है। और उनके नेतृत्वविहिन नेतृत्व में गहरी आस्था प्रकट करनी पड़ती है। कहावत है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती है लिहाजा राहुल गांधी को चाहिए कि अपनी पार्टी के हित में यह अवश्य सीखना शुरू कर दे कि कब, कहां और क्या बोलना है?
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