दोहरा मानदंड
अभिनेत्री पायल रोहतगी को राजस्थान स्थित बूंदी की एक अदालत ने चौबीस दिसम्बर तक न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया था।
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हालांकि मंगलवार को उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया। उन्होंने सोशल मीडिया पर स्वतंत्रता सेनानी मोतीलाल नेहरू, पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के खिलाफ विवादित पोस्ट डाला था। हालांकि यह सच है कि अभिनेत्री पायल ने नेहरू-गांधी परिवार के खिलाफ टिप्पणी करते हुए जो वीडियो पोस्ट किया था, वह अपमानजनक, मिथ्या और निंदनीय थी। नेहरू-गांधी परिवार के विरुद्ध की गई इस टिप्पणी की चाहे जितनी र्भत्सना की जाए, कम है। लेकिन यह भी सच है कि उनका अपराध इतना बड़ा नहीं था कि उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया जाए। नेहरू-गांधी परिवार को इस मामले में पायल रोहतगी के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करने का पूरा अधिकार बनता है। इसी आधार के तहत राजस्थान में बूंदी के कांग्रेस कार्यकर्ता चम्रेश शर्मा ने 10 अक्टूबर को पायल रोहतगी के विरुद्ध मामला दर्ज कराया था। पिछली 21 सितम्बर को पायल ने फेसबुक पर यह विवादित वीडियो पोस्ट किया था।
पायल रोहतगी ने अपनी गिरफ्तारी को अभिव्यक्ति की आजादी पर कुठाराघात बताया था। ठीक है कि भारतीय संविधान नागरिकों को अभिव्यक्ति की आजादी का प्रावधान करता है, लेकिन संविधान ने अभिव्यक्ति की आजादी की सीमाओं का भी निर्धारण किया है। पायल रोहतगी को किसी भी सामग्री का इस्तेमाल करने से पहले उसकी ऐतिहासिक तथ्यता की जांच-पड़ताल करनी चाहिए थी। जाहिर है उन्होंने ऐसा नहीं किया और उन्हें इसकी सजा भी मिली। लेकिन इसी के साथ इस मसले का एक पहलू यह भी है कि कांग्रेस अभिव्यक्ति की आजादी के सवाल पर दोहरा मानदंड रखती है। अभी हाल ही में कुछ लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जब नक्सली होने के आरोप में पुलिस ने गिरफ्तार किया था तब कांग्रेस ने अभिव्यक्ति की आजादी का झंडा बुलंद किया था, परंतु इस मामले में उसने अलग नजरिया पेश किया। क्या कांग्रेस को इस मामले को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए था। दरअसल, सरकार और पुलिस दोनों हर मसले का हल डंडे से निकलने की आदी हो गई है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अब भविष्य में इस तरह के मामलों में सरकार की तरफ से समझदारी दिखाई जाएगी।
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