राजन का आशय

Last Updated 10 Dec 2019 06:40:19 AM IST

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने हाल में एक लेख लिखा है, जिसका आशय है कि भारतीय अर्थव्यवस्था आर्थिक विकास के मामले में सुस्ती की शिकार है।


राजन का आशय

हालांकि लगभग यही बात 5 दिसम्बर 2019 को रिजर्व बैंक के मौजूदा गवर्नर भी बता चुके हैं।

गौरतलब है कि हाल में घोषित मौद्रिक नीति में रिजर्व बैंक ने साफ किया है कि 2019-20 में अर्थव्यवस्था में विकास की दर 5 प्रतिशत संभावित है। राजन ने कुछ समय पहले आशय की चेतावनी दी थी कि मुद्रा कजरे में डूबत कर्ज का मसला खड़ा हो सकता है। अब आंकड़े आ रहे हैं कि सरकारी बैंकों द्वारा दिए गए मुद्रा कजरे में डूबत कर्ज का अनुपात अपेक्षाकृत ज्यादा है।

इधर वित्त मंत्री घोषणाएं भी कर रही हैं कि बैंकों ने हाल के महीनों में बहुत कर्ज बांटे हैं। यह बात सही है कि अर्थव्यवस्था में क्रय शक्ति का प्रवाह जरूरी है ताकि लोग घर, मकान, बाइक, कार आदि खरीदने को प्रेरित हो सकें। इसके लिए बैंक कर्ज दें, यह भी उचित है। पर समझने की बात है कि कर्ज देना तो महत्त्वपूर्ण है पर कर्ज का वापस आना भी महत्त्वपूर्ण है। कर्ज वापस न आएंगे और खासकर बैंकों द्वारा दिए गए कर्ज वापस न आएंगे तो इसका खमियाजा आम करदाता ही झेलेगा।

बैंकों को उबारने के लिए सरकार जो रकम उनमें डालती है, वह भी अंतत: करदाताओं की जेब से ही जाती है। तो अर्थव्यवस्था का संचालन संतुलन की मांग करता है। कर्ज देकर मांग बढ़ाना स्वागत योग्य है पर इसके लिए संसाधनों को डुबाना ज्यादती है। हर सरकार को यह संतुलन साधना होता है, जो आसान न होता। ऐसे उन विद्वानों की भी सुननी चाहिए जो सरकार विरोधी हों। हाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने धुर आलोचक अरु ण शौरी की सेहत का हालचाल लेने पुणो के अस्पताल पहुंचे। अर्थव्यवस्था बीमार चल रही हो तो अर्थ विशेषज्ञों की बात सुन लेने में ही परिपक्वता है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण सारी ऊर्जा इसमें लगा रही हैं कि अर्थव्यवस्था में सब ठीक है। आर्थिक विकास और न्याय में एक समानता है, यह सिर्फ  होनी ही नहीं चाहिए बल्कि होते हुए दिखे भी। विकास कई मामलों में होता हुआ दिख नहीं रहा है। राजन की बात का यही आशय है। सरकार को उस पर ध्यान देना चाहिए। निंदक नियरे राखिये आंगन कुटी छवाय-यह बात तो भारतीय मनीषा में सहज स्वीकृत है। राजन की कुटिया भले अमेरिका में हो पर अपने विचारों के माध्यम से तो वह नियमित तौर पर भारत में मौजूद हैं। इस मौजूदगी का स्वागत होना चाहिए।



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