नापाक मंशा
भारतीय मूल की अमेरिकी सांसद प्रमिला जयपाल द्वारा अमेरिकी संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा में जम्मू-कश्मीर से संबंधित मुद्दे पर प्रस्ताव पेश किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है।
नापाक मंशा |
आम तौर पर विदेशों में भारतीय मूल के जो लोग रहते हैं, उनमें भारत के प्रति विशेष लगाव रहता है। यही वजह है कि अमेरिका में रहने वाले भारतीय समुदाय के लोग प्रस्ताव पेश करने वाली प्रमिला जयपाल से सख्त नाराज हैं।
भारतीय मूल के करीब पच्चीस हजार से अधिक अमेरिकियों ने प्रमिला जयपाल को ईमेल भेजकर अपना विरोध दर्ज कराया था। भारत के पक्ष में यह प्रस्ताव सामान्य है, और इस पर अमेरिकी कांग्रेस के उच्च सदन सीनेट में वोटिंग नहीं हो सकती। लिहाजा, यह कानून नहीं बनेगा। प्रस्ताव में जम्मू-कश्मीर में संचार सेवाओं पर प्रतिबंध हटाने, इंटरनेट सेवाओं को बहाल करने और हिरासत में लिये गए नेताओं को रिहा करने की अपील है।
दरअसल, डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रमिला जयपाल उदार वामपंथी विचारधारा से जुड़ी हैं, और मानवाधिकारवादी कार्यकर्ता के तौर पर भी जानी जाती हैं। इसलिए उनको लगता है कि जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकार का उल्लंघन किया जा रहा है। लिहाजा, वह इस प्रस्ताव के माध्यम से कश्मीर के मुद्दे पर विश्व जनमत को अपने पक्ष में करके भारत और अमेरिकी, दोनों सरकारों पर दबाव बनाना चाहती हैं। लेकिन अमेरिकी कांग्रेस के निचले सदन में बहुत मुश्किल से उन्हें इस प्रस्ताव पर केवल एक सहयोगी प्रस्तावक मिला जो रिपब्लिकन पार्टी के स्टीव वॉटकिंस हैं।
इस बात से यह साबित होता है कि उनके प्रस्ताव को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया। सभी जानते हैं कि भारत एक संप्रभु राष्ट्र है, और जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है। इसलिए जम्मू-कश्मीर भारत का आंतरिक मसला है, और इस पर भारत किसी का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं कर सकता है। भारत अपने राष्ट्रीय हितों का निर्धारण करने के लिए स्वतंत्र है। अगर भारत सरकार ने यह महसूस किया कि घाटी में शांति बहाली के रास्ते में संविधान का अनुच्छेद 370 बाधक था तो उसे हटाने का पूरा अधिकार भारतीय संसद और सरकार में निहित है। भारत की संप्रभुता को कोई चुनौती नहीं दे सकता। यह संतोष की बात है कि प्रमिला जयपाल की भारत-विरोधी नापाक राजनीतिक मंशा पूरी नहीं हो सकी।
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