‘उपहार’ दोहराया
दिल्ली के अनाज मंडी इलाके के अग्निकांड ने 1997 के उपहार की भयावह त्रासदी दोहरा दी है।
‘उपहार’ दोहराया |
इस कल्पना से ही सिहरन होती है कि किसी तरह रोजी-रोटी के लिए सुदूर गांवों-कस्बों से आए लोग दिन भर काम करने की थकान के बाद सोए हुए जलकर या धुएं से दम घुटने के कारण दुनिया छोड़ गए। इतने सारे लोगों का एक साथ असमय काल कवलित हो जाना राजधानी की व्यवस्था पर ऐसा प्रश्न चिह्न है, जिसका सहमतिकारक जवाब किसी के पास नहीं। जब भी इस तरह का हादसा होता है; कई प्रकार के कानूनी प्रश्न उठाए जाते हैं। मसलन, फैक्ट्ररी अवैध थी या वैध? इसे अग्निशमन विभाग से एनओसी मिला था या नहीं? नगर निगम की अनुमति थी या नहीं? आदि-आदि। इसमें सरकार, सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों के बच निकलने का आधार मिल जाता है। पूरे क्षेत्र में छोटे-मोटे काम और फैक्ट्रियां चल रहीं हैं। वर्षो से वहां ये काम हो रहे हैं। वह ऐसा क्षेत्र है, जहां बहुत सारे विभागों का एनओसी नियमत: नहीं मिल सकता। जाहिर है, इसमें भ्रष्टाचार हुआ है। तब ऐसे में मजदूरों का क्या दोष था? कोई मजूदर कहीं काम मांगने जाता है तो मालिक या मैनेजर से नहीं पूछता कि उनकी फैक्टरी अवैध है या वैध। उसे तो बस रोजगार चाहिए। यह जिम्मेवारी तो प्रशासन की है।
बहरहाल, उस क्षेत्र में गलियां इतनी संकरी हैं कि कोई अनहोनी हो जाए तो दमकल की गाड़ियां या राहत व बचाव दल का पहुंचना मुश्किल है। फिर भी अग्निशमन कर्मचारियों के साहस की दाद देनी होगी कि प्रतिकूल परिस्थितियों में जितना संभव था, उन्होंने लोगों को बचाया। अग्निशमन को केवल आग लगने की सूचना दी गई थी, लोगों के फंसने की नहीं। अग्निशमन और बचाव दोनों कठिन था। खैर, दिल्ली सरकार ने मृतकों के परिजनों के लिए 10 लाख तथा दिल्ली भाजपा ने पांच लाख रुपये देने का ऐलान कर दिया है। इससे परिवार को थोड़े दिन जीवन जीने में थोड़ी सहायता हो जाएगी, उसके बाद क्या? दिल्ली सरकार ने जांच के आदेश दे दिए हैं और दिल्ली पुलिस ने भी। इस रिपोर्ट पर स्थायी इंतजाम हुए तो कोई बात होगी। अगर शॉर्ट सर्किट से आग लगी तो यह कहीं भी लग सकती है। अगर इस तरह की फैक्ट्रियों को बंद कर दें तो हजारों के रोजगार खत्म हो जाएंगे। ऐसे में काम यह करना पड़ेगा कि कैसे पूरे क्षेत्र में सुरक्षा-बचाव का फूलप्रूफ उपाय आपात स्तर पर किया जाए।
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