शीत सत्र का आगाज
आज से आरंभ हो रहे संसद का शीतकालीन सत्र कई मायनों में महत्त्वपूर्ण है।
शीत सत्र का आगाज |
आर्थिक सुस्ती को लेकर यदि राजनीतिक दल गंभीर हुए तो इस पर गंभीर बहस हो सकती है। सरकार इस संबंध में उठाए गए कदमों और भविष्य की योजनाओं की रूपरेखा अगर रखती है तो उससे एक साथ कारोबारियों, निवेशकों, किसानों, कामगारों सबको कुछ न कुछ संकेत मिलेगा। सरकार ने सत्र के लिए अपनी कार्यसूची में नागरिकता (संशोधन) विधेयक को सामने रखा है।
मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में इस विधेयक को संसद में पेश किया था, लेकिन विपक्ष के विरोध के कारण यह पारित नहीं हो सका था। लोक सभा का कार्यकाल खत्म होने के बाद यह विधेयक भी खत्म हो गया था। इस विधेयक में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से धार्मिंक उत्पीड़न के चलते भागकर 31 दिसम्बर, 2014 तक भारत आए हिन्दू, जैन, सिख, ईसाई और पारसी समुदाय के लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है। पिछली सरकार ने जब यह विधेयक पेश किया था, तब असम समेत पूर्वोत्तर के राज्यों में भारी विरोध हुआ था।
हालांकि उसके बाद हुए लोक सभा चुनाव में पूर्वोत्तर में भाजपा को एकतरफा विजय मिली थी। सरकार का तर्क है कि जो देश हमसे टूटकर बने हैं वहां यदि हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई उत्पीड़ित होते हैं तो वे भागकर भारत ही शरण के लिए आ सकते हैं इसलिए मानवता के आधार पर हमें उन्हें भारत की नागरिता देनी चाहिए। यह एक संवेदनशील मुद्दा है और इसी रु प में इस पर विचार होना चाहिए। शिवसेना राजग से अलग होने के बाद इस पर क्या रु ख अपनाती है यह भी देखना अहम होगा।
इसके अलावा दिल्ली में 1,728 अवैध कालोनियों को नियमित करने संबंधी विधेयक, ड्यूटी के दौरान डॉक्टरों पर हमला करने वालों पर जुर्माना लगाने, कॉर्पोरेट कर दरों में कटौती और ई-सिगरेट पर पाबंदी संबंधी दो अधिसूचनाओं को कानून में बदलने संबंधी विधेयक भी सदन में पेश किया जा सकता है। यह नरेन्द्र मोदी सरकार के कार्यकाल का दूसरा सत्र है। जिस तरह कांग्रेस एवं राहुल गांधी के खिलाफ भाजपा के तेवर हैं, उन्हें देखते हुए साफ लगता है कि यह विषय संसद में मोर्चाबंदी का कारण बनेगा। हालांकि सभी राजनीतिक दलों को समझना चाहिए कि संसद बहस करने कानून बनाने के लिए है। संसद को उसकी सही भूमिका में बनाए रखने की जिम्मेदारी सभी दलों की है।
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