पेयजल पर रार
शुद्ध जल प्राप्त करना हमारे जीवन का मूल अधिकार है, ठीक वैसे ही जैसे शुद्ध हवा में सांस लेना हमारे जीवन के लिए बेहद जरूरी है।
पेयजल पर रार |
लेकिन क्या यह भी राजनैतिक उठा-पटक और चुनावी हानि-लाभ का विषय बनाया जा सकता है? भले यकीन करना मुश्किल हो लेकिन खबर तो यही है।
केंद्रीय उपभोक्ता मामले और खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री रामविलास पासवान ने दिल्ली सहित कई राज्यों की राजधानियों में पेयजल में शुद्धता की स्थिति के बारे में भारतीय मानक ब्यूरो की रिपोर्ट जारी की तो दिल्ली सबसे निचले पायदान पर पाई गई। उसकी जलापूर्ति में पानी की गुणवत्ता के सभी 11 नमूने गंध सहित 19 मानकों पर सही नहीं पाए गए। जबकि मुम्बई के दस नमूने सभी मानकों पर सही पाए गए। इसी तरह बाकी राजधानियों से भी दिल्ली में लोगों को शुद्ध पेयजल कमतर अवस्था में मिल रहा है। इन नतीजों के जाहिर होने के फौरन बाद दिल्ली जल बोर्ड के उपाध्यक्ष दिनेश मोहनिया ने फौरन इसका खंडन किया और कहा कि हर दो-तीन घंटे पर अलग-अलग जगहों से नमूने लिये जाते और उनकी गुणवत्ता की जांच की जाती है।
उनके हिसाब से केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी हाल ही में दिल्ली में नल से प्राप्त होने वाले पानी को कई यूरोपीय शहरों से बेहतर पाया। फिर इसके फौरन बाद आप के प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने केंद्र और उसके मंत्रियों को चुनौती दी कि किसी भी भाजपा शासित राज्य से दिल्ली के पानी की निष्पक्ष जांच कराकर देख लें। उनका यह भी कहना है कि केंद्र हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में पराली जलाने के कारण हो रहे वायु प्रदूषण को रोकने में नाकाम रहा तो दिल्ली के पानी की गुणवत्ता पर ओछी राजनीति हो रही है।
यकीनन यह हैरानी का विषय है कि गुणवत्ता की जांच भी राजनीति के चंगुल में फंस गई है। अगर विवाद सही है तो निश्चित रूप से बेहद गंभीर है। इससे तो यह भी जाहिर होता है कि जांच के नतीजे अपने-अपने ढंग से निकाले जा सकते हैं, क्योंकि जांच चाहे जिस प्रयोगाला में की जाए, नतीजे तो एक जैसे होने चाहिए। खैर, हवा और पानी का मामला ऐसा है कि इस पर थोड़ी भी लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिए क्योंकि यह लोगों के सेहत से जुड़ा मामला है। इस बारे में तो दलगत राजनीति से उठकर सोचने की जरूरत है।
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