चिंताजनक तस्वीर
भारतीय स्टेट बैंक की एक शोध रिपोर्ट स्वीकार करें तो मानना होगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय बुरे दौर में है।
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दूसरे, सरकार द्वारा घोषित प्रोत्साहन पैकेजों का अर्थव्यवस्था की गति बढ़ाने की दिशा में अपेक्षित असर नहीं हुआ है। स्टेट बैंक के आर्थिक शोध विभाग की रिपोर्ट ‘एकोरैप’ के अनुसार चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 4.2 प्रतिशत रह सकती है। पूर्व की तिमाही में यह पांच प्रतिशत था। लगातार दो तिमाही में गिरावट का अर्थ है कि वर्तमान वित्तीय वर्ष 2019-20 का विकास दर अनुमान घटेगा। इसलिए स्टेट बैंक द्वारा विकास दर पांच प्रतिशत का आकलन सही लगता है।
ध्यान रखिए कि बैंक ने पूर्व में आर्थिक वृद्धि दर 6.1 प्रतिशत रहने की संभावना जताई थी। रिपोर्ट में हालांकि अगले वर्ष के लिए बेहतर उम्मीद की बात है। इसके अनुसार 2020-21 में आर्थिक वृद्धि दर में तेजी आएगी। यह 6.2 प्रतिशत रह सकती है लेकिन यह परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। वर्तमान गिरावट का कारण वाहनों की बिक्री में कमी, हवाई यातायात में कमी, बुनियादी क्षेत्र की वृद्धि दर स्थिर रहने, निर्माण एवं बुनियादी ढांचा क्षेत्र में निवेश में कमी तथा कृषि क्षेत्र का अच्छा न करना है। वाहनों की बिक्री में सुधार की ज्यादा संभावना इसलिए नहीं है कि यह दुनिया भर की प्रवृत्ति है।
पर्यावरण एवं अन्य कारणों से सार्वजनिक या किराये के वाहनों को प्राथमिकता का चलन बढ़ा है। किंतु शेष क्षेत्र में अच्छा करना होगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक दिसम्बर की मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत दर में बड़ी कटौती कर सकता है। पछले महीने रिजर्व बैंक ने नीतिगत दर (रेपो) में 0.25 फीसद की कटौती की। लगातार पांचवीं बार यह कटौती की गई।
विचार करने वाली बात है कि जब पांच बार की कटौती भी निवेश, उत्पादन एवं बिक्री को बढ़ावा नहीं दे सकी तो फिर छठे बार में यह कैसे सफल हो सकेगी? वास्तव में ज्यादा कटौती के उल्टे परिणाम भी आ सकते हैं। वैश्विक अर्थ संकट के असर से इंकार नहीं किया जा सकता। पर भारतीय संदर्भ में मूल बात है कि लोगों के पास पैसे होते हुए भी वे निवेश नहीं कर रहे। इसका एक कारण भ्रष्टाचार विरोधी सख्ती को माना जा रहा है। इसमें क्या रास्ता निकल सकता है, इस पर गहराई से विचार कर कदम उठाना होगा।
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