योगी को झटका
इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा उत्तर प्रदेश में 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के निर्णय पर रोक आदित्यनाथ योगी सरकार के लिए बड़ा झटका है।
योगी को झटका |
योगी सरकार ने पिछले 24 जून को अति पिछड़ी जातियों में कश्यप, राजभर, धीवर, बिंद, कुम्हार, कहार, केवट, निषाद, भर, मल्लाह, प्रजापति, धीमर, बाथम, तुरहा, गोडिया, मांझी व मचुआ को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल किया था। इसके लिए आंदोलन भी हुए। जिस समय सरकार ने यह निर्णय लिया उसे आभास रहा होगा कि मामला न्यायालय में जाएगा। ऐसे निर्णय लेने के पहले उनके संवैधानिक एवं कानूनी पहलुओं का अध्ययन किया जाता है।
योगी ने अवश्य ही कानून मंत्रालय से लेकर कुछ कानूनिवद् से इस पर सलाह ली होगी। हालांकि अभी इसका अंतिम फैसला आना बाकी है। लेकिन इस समय न्यायालय ने याचिकाकर्ता की इस टिप्पणी को स्वीकार किया है कि केंद्र सरकार कानून बनाकर किसी जाति को अनुसूचित जाति राष्ट्रपति की अधिसूचना से घोषित कर सकती है यानी राज्य सरकार को ऐसा अधिकार नहीं है। इस तरह यह राज्य के अधिकार का संवैधानिक प्रश्न बन गया है। सरकार को न्यायालय ने इस पर नोटिस जारी किया है। देखते हैं, सरकार क्या जवाब देती है व मामले का अंतिम निर्णय क्या आता है।
ध्यान रखिए कि पूर्ववर्ती सरकार ने भी इस तरह की अधिसूचनाएं जारी की थीं। उन पर भी रोक लगी है। जाहिर है, निर्णय आने तक ये जातियां अति पिछड़ी जातियां ही मानी जाएंगी। सही है कि अनुसूचित जाति/जनजाति की केंद्रीय सूची है। केंद्र को इन जातियों को संसद में कानून बनाकर इसमें किसी जाति को शामिल करने या बाहर करने का अधिकार है किंतु राज्य को ऐसा अधिकार नहीं है, इस पर एक राय नहीं। अनेक राज्यों ने अनुसूचित जाति/जनजाति की अपनी सूची में नई जातियों को शामिल किया है। एक राज्य में जो जाति अनूसूचित जाति/जनजाति की सूची में है, वह दूसरे राज्य में नहीं है।
यह स्थिति देश भर में है। अगर इलाहाबाद उच्च न्यायालय फैसला देता है कि राज्य ऐसा नहीं कर सकते तो फिर अन्य राज्यों में भी इसे आधार बनाकर याचिकाएं डाली जाएंगी व भानुमति का पिटारा खुलेगा। ऐसी स्थिति में मामला उच्चतम न्यायालय में आएगा और अंतिम फैसला उसी का होगा। देश में राजनीतिक स्वाथरे को ध्यान में रखते हुए इस तरह के फैसले नहीं होने चाहिए।
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