इमरान की स्वीकारोक्ति

Last Updated 17 Sep 2019 03:48:18 AM IST

भारत ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को जब से खत्म किया है, तब से पाकिस्तान लगातार युद्धोन्माद पैदा कर रहा है।


इमरान की स्वीकारोक्ति

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने एक बार फिर भारत के साथ युद्ध की संभावना जताई है। हालांकि भारत भी हल्के स्वर में यही बोल रहा है। दोनों देशों की आंतरिक स्थिति-राजनीतिक और आर्थिक-ऐसा करने के लिए विवश कर रही है। भारत में राजनीतिक तौर पर भले स्थिरता है। लेकिन आर्थिक मोर्चे पर देश मंदी से जूझ रहा है। पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति तो पूरी तरह खराब हो चुकी है। ऐसी स्थिति में भारत और पाकिस्तान दोनों में से किसी की सरकार दूसरे के साथ समर्पण भाव दिखाएगी तो, उस देश की जनता उसे निपटा देगी।

आमतौर पर हर देश की सरकरों की ओर से अपनी जनता को खुश करने के लिए या उसका ध्यान आंतरिक समस्याओं से हटाने के लिए अपने शत्रु राष्ट्रों के विरुद्ध युद्ध उन्माद पैदा करती हैं। युद्ध हो या न हो, जनता को युद्ध के उन्माद में रखना उसके वास्तविक दायित्वों से भटकाना है। किसी भी देश के भविष्य के लिए यह स्थिति अच्छी नहीं हो सकती। इस बार पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने बुद्धिमानी का परिचय देते हुए यह स्वीकार कर लिया है कि पाकिस्तान भारत के साथ पारंपरिक युद्ध में हार सकता है। वह इस तरह की बातें कर रहे हैं तो इसका सीधा अर्थ है कि वह अपनी जनता को समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि युद्ध से बचना चाहिए।

अपनी जनता को यह समझाना भी युद्ध को टालना ही है। लेकिन इसी के साथ अपनी सत्ता, अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए पाकिस्तान में सक्रिय भारत विरोधी ताकतें, सेना और कट्टरपंथी ताकतों को संतुष्ट करने के लिए परोक्ष रूप से परमाणु युद्ध की भी धमकी देते रहते हैं। जाहिर है कि पारंपरिक युद्ध में पाकिस्तान भारत का मुकाबला नहीं कर सकता, मगर परमाणु युद्ध हुआ तो दोनों देशों को गंभीर नुकसान उठाना होगा। इसलिए एक बड़ा और जिम्मेदार लोकतांत्रिक देश होने के नाते भारत को शांति स्थापित करने के हर एक अवसर का लाभ उठाना चाहिए।

युद्ध एक नकारात्मक विचार है। आधुनिक समय में जब कई देश परमाणु हथियारों से लैस हैं, ऐसे हालात में कोई भी देश युद्ध और हिंसा का समर्थन नहीं करेगा। इसलिए हर सूरत में युद्ध से बचा जाना चाहिए। भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की चाहे कितनी भी बातें हो रहीं, किंतु इनके बीच से ही शांति की संभावनाएं तलाशी जानी चाहिए।



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