विशेष त्वरित अदालतें
महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध के मामलों के विशेष न्यायालयों के गठन की ओर केंद्र सरकार की पहल स्वागतयोग्य है।
विशेष त्वरित अदालतें |
सामान्य न्यायालयों में इन अपराधों की सुनवाई अन्य अपराधों की तरह होने से फैसले में काफी देर होती है और इसमें कई बार अपराधियों के बच निकलने की स्थिति भी तैयार हो जाती है। केंद्रीय कानून मंत्रालय के तहत न्याय विभाग द्वारा तैयार किए एक प्रस्ताव में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध के मामलों की सुनवाई में तेजी लाने के लिए कुल 1,023 विशेष त्वरित अदालतों की स्थापना की बात कही गई है। हमारे पास जो आंकड़ा उपलब्ध है, उसके अनुसार देश में ऐसे 1 लाख 66 हजार 882 से अधिक मुकदमे लंबित हैं।
जाहिर है, अगर इन मामलों की सुनवाई विशेष न्यायालयों में त्वरित गति से नहीं हो तो फिर संख्या बढ़ती जाएगी। सरकार ने बच्चों के प्रति अपराधों के कानूनों में बदलाव लाकर काफी सख्त सजा का प्रावधान कर दिया है, किंतु इसकी प्रासंगिकता तभी है, जब अपराधियों को सजा हो। इस नाते विशेष न्यायालय जरूरी है। गुणा भाग करके यह माना गया है कि प्रत्येक विशेष न्यायालय द्वारा हर साल कम-से-कम ऐसे 165 मामलों का निपटारा किया जा सकता है। ऐसा हुआ तो कुल 1023 विशेष त्वरित न्यायालय लंबित मामलों का एक वर्ष के अंदर निपटारा कर देंगे।
ध्यान रखिए, सर्वोच्च न्यायालय ने भी सरकार से इसके लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना करने के लिए कहा था। उसका ध्यान रखते हुए इन 1023 में से 389 न्यायालय खासतौर से ‘यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत दर्ज मामलों की सुनवाई करेंगी। इसका कारण यह है कि इन 389 जिलों में पॉक्सो कानून के तहत दर्ज मामलों की संख्या 100 से अधिक है। शेष 634 न्यायालय या तो बलात्कार के मामलों या पॉक्सो कानून के मामलों की सुनवाई करेंगी।
चूंकि इन न्यायालयों में अन्य मामलों की सुनवाई नहीं होंगी, इसलिए ये स्वयं गंभीर मामलों की छंटनी कर उनको प्राथमिकता में सुनने के लिए स्वतंत्र होंगी। इस प्रस्ताव के अमल में आने के साथ महिलाओं और बच्चों के साथ न्याय के वास्तविक नये युग की शुरु आत होगी। जिस तरह से महिलाओं और बच्चे-बच्चियों के प्रति सामान्य और जघन्य अपराधों में वृद्धि हुई है, उसे देखते हुए पूरा कानूनी ढांचा इसके लिए खड़ा करना जरूरी है।
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