वैश्विक मंच पर कश्मीर
कश्मीर के मामले में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति की चिंताओं से भी बात आगे बढ़ गई है।
वैश्विक मंच पर कश्मीर |
पाकिस्तान ने 115 पृष्ठों का प्रतिवेदन पेश किया और उसके विदेश मंत्री ने अपनी दलील पेश की। कथित तौर उसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला के बयानों का भी जिक्र है। हमारे प्रवक्ता ने उसके आरोपों का खंडन किया और कश्मीर को आंतरिक मामला बताया। बेशक, यह अंदरूनी मामला है और हमें ही हालात ठीक करना है। लेकिन हम अंतरराष्ट्रीय चिंताओं से भी मुंह नहीं मोड़ सकते। इसलिए यह हमारी अपनी चिंता का विषय होना चाहिए कि हम सवा महीने बाद भी हालात क्यों नहीं सुधार पा रहे हैं? अब भी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार यही कह रहे हैं कि मोबाइल, इंटरनेट की चिंता छोड़कर कश्मीरियों को अपनी जिंदगी आगे बढ़ानी चाहिए। उनकी दलील है कि इंटरनेट वगैरह का इस्तेमाल आतंकवादी करते हैं। इसमें दो राय नहीं कि ऐसा संभव है मगर सरकार और सुरक्षा मशीनरी को इसी से तो मुकाबला करना है। इसके लिए लोगों को ही सुविधाओं से वंचित करने का तर्क कहां तक वाजिब हो सकता है? फिर बात मोबाइल और इंटरनेट की ही नहीं है, तरह-तरह की पाबंदियां, गिरफ्तारियां, नाकेबंदियां अनिश्चितकाल तक तो जारी नहीं रखी जा सकतीं।
ये मामले निश्चित ही चिंता बढ़ाते हैं। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति ने यह भी कहा है कि कोई भी फैसला कश्मीर के लोगों की सहमति से ही होना चाहिए। जहां तक पाकिस्तान का मामला है तो उसके रवैए पर आपत्ति उठाना हमारा फर्ज बनता है। वह मामले को अंतरराष्ट्रीय मंच उठाने की कोशिश करेगा, यह भी कोई आश्चर्यजनक नहीं है। किंतु इसी में हमारी कूटनीति की परीक्षा होनी है। अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दरजे को खत्म करने और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने के बाद हमारे विदेश मंत्री चीन गए और उसे आस्त किया कि इसका पाकिस्तान से लगती एलओसी और चीन से लगती एलएसी पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। परंतु चीन न सिर्फ कश्मीर का मामला संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ले गया, बल्कि हाल में चीन के विदेश मंत्री के पाकिस्तान दौरे में साझा बयान में कश्मीर का मुद्दा उठा। इसी तरह डोनाल्ड ट्रंप ने फिर कहा है कि वे मध्यस्थता को तैयार हैं। मतलब यह कि कश्मीर का मसला अंतरराष्ट्रीय मंच पर है और हमें विशेष पहल और स्थितियों में सुधार करने की जरूरत है।
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