अब आचार्य गए

Last Updated 26 Jun 2019 05:59:06 AM IST

भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य का इस्तीफा राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का मामला बना है तो यह अस्वाभाविक नहीं है।


अब आचार्य गए

हालांकि पद छोड़ने के पीछे उन्होंने निजी कारणों का हवाला दिया है। लेकिन जानकार निश्चय ही इसे पिछले कुछ महीनों से घटित घटनाक्रम से जोड़कर देखेंगे। आखिर तीन साल के अपने कार्यकाल के समाप्त होने से छह महीने पहले इस्तीफा देना सामान्य घटना तो नहीं माना जा सकता। पिछले सात महीनों में केंद्रीय बैंक के शीर्ष पदों में से यह दूसरा बड़ा इस्तीफा है। दिसम्बर 2018 में गवर्नर उर्जित पटेल ने अपने पद से इस्तीफा दिया था और तब उनका कार्यकाल करीब नौ महीने बचा था। केंद्रीय बैंक ने अपने बयान में इतना ही कहा है कि कुछ सप्ताह पहले आचार्य ने पत्र लिखकर सूचित किया था कि अपरिहार्य निजी कारणों के चलते 23 जुलाई, 2019 के बाद वह डिप्टी गवर्नर के अपने कार्यकाल को आगे जारी रखने में असमर्थ हैं। तो अब नियुक्ति समिति को उनके इस्तीफे पर विचार करना है। मगर देश को पता है कि वे रिजर्व बैंक की स्वायतत्ता के घोर समर्थक हैं। कई नीतिगत मुद्दों पर आचार्य एवं सरकार के बीच मतभेद बाहर भी आ गए थे। उन्होंने पिछले वर्ष अक्टूबर में एक कार्यक्रम में सरकार के साथ रिजर्व बैंक के मतभेदों को सार्वजनिक भी किया था। सुरक्षित कोष के इस्तेमाल, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों पर नियंत्रण और कर्ज वितरण संबंधी नीतियों पर सरकार की ओर से पड़ रहे दबावों पर उन्होंने खुलकर बात की थी।

वित्त सचिव ने तब इस प्रकार के वक्तव्य की आलोचना की और तत्कालीन वित्त मंत्री अरु ण जेटली ने इससे सार्वजनिक तौर पर असहमति जताई। हालांकि उसके बाद उर्जित पटेल का इस्तीफा हुआ और उन्होंने आज तक कुछ बोला नहीं है, पर माना जा रहा है कि इन तीन मुद्दों पर सरकार की नीतियों से उनकी भी असहमति थी। वर्तमान गवर्नर शशिकांत दास से भी उनके नीतिगत मतभेद सामने आ रहे थे। दास की अध्यक्षता वाली मौद्रिक नीति समिति ने पिछली तीन समीक्षाओं में रेपो दर में .25 प्रतिशत की लगातार कटौती की है। इसमें से दो में आचार्य ने विरोध किया था और अंतिम निर्णय में सहमति देते हुए भी कुछ शत्रे लगाई थीं। वैसे यह कहना कठिन है कि सरकार का पक्ष सही रहा है या आचार्य का, क्योंकि सरकार को समाज कल्याण संबंधी नीतियों पर काम करना होता है और बैंक शुद्ध आर्थिक एवं वित्तीय कसौटियों पर उन कदमों का समर्थन या विरोध करते हैं।



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